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________________ १६२ अहिंसा तत्त्व दर्शन शब्द में आत्मा का सहज रूप अध्यात्म है। ५. अध्यात्म का चरम या परम रूप है-अकर्मण्यता यानी दूसरे पदार्थ के सहयोग का अस्वीकार-सर्वथा आत्म-निर्भरता यह मुक्ति-स्थिति है। जीवनकाल में-कर्मण्यता में अकर्मण्यता का जो अंश है वह अध्यात्म है अथवा कर्मण्यता में असत् कर्मण्यता का जो अभाव है, वह अध्यात्म है। ६. अध्यात्मवाद से आकांक्षा की तृप्ति नहीं, उसका अभाव हो सकता है। ७. अध्यात्मवाद से आवश्यकता की पूर्ति नहीं, उसकी पूर्ति के साधनों का विकार मिट सकता है। ८. अध्यात्म से पदार्थ की प्राप्ति नहीं, प्राप्त पदार्थ पर होने वाला ममकार या बन्धन छूट सकता है। ६. भौतिक प्राप्ति के लिए भौतिक साधन अपेक्षित होते हैं और आत्मप्राप्ति के लिए आत्मिक साधन । १०. भौतिकता से दूर रहने के लिए आत्मिक साधन उपयोगी हैं। ११. भौतिकता को सीमित करने के लिए आत्मिक साधन चाहिए । १२. भौतिक जीवन का स्तर ऊंचा होगा, आवश्यकताएं बढ़ेंगी, शान्ति कम होगी। १३. आध्यात्मिक जीवन उठेगा, आवश्यकताएं कम होंगी, शान्ति बढ़ेगी। १४. पदार्य के अभाव में अशान्ति और भाव में शान्ति, ऐसी व्याप्ति नहीं बनती। १५. मानसिक नियन्त्रण से मानसिक साम्य होता है और वही शान्ति है । मानसिक अनियन्त्रण से मानसिक वैषम्य बढ़ता है, वही अशान्ति है। १६. जहां आकांक्षा है, वहां अशान्ति है और जहां आकांक्षा नहीं, वहां शान्ति है। १७. आवश्यकता है, वहां श्रम होगा, अशान्ति नहीं। १८. आवश्यकता की पूर्ति सम्भव है, आकांक्षा की पूर्ति असम्भव । १६. शोषण का मूल जीवन की आवश्यकताएं नहीं, मानसिक अतृप्ति है। २०. अहिंसा का आधार कायरता नहीं, अभय, समता और संयम है। २१. अपरिग्रही वह नही, जो दरिद्र है । अपरिग्रही वह है, जो त्यागी है । २२. भोग समाज की संघातक या संघटक शक्ति है और त्याग विघातक या विघटक शक्ति । २३. भोग समाज की अपेक्षा है और त्याग उसकी अति का नियन्त्रण । २४. भोग आत्मा का विकार है और त्याग आत्मा का स्वरूप । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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