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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १४३ महात्मा गांधी ने भी अहिंसा के मार्ग में बल-प्रयोग को निषिद्ध माना है । तब क्या गाय को बचाने के लिए मुसलमानों से लड़ंगा और उनकी हत्या करूंगा ? ऐसा करके तो मैं मुसलमान और गाय दोनों का ही दुश्मन बनूंगा । मेरा कोई भाई गोहत्या पर उतारू हो जाए, तब मुझे क्या करना चाहिए ? मैं उसे मार डालूं या उसके पैर पकड़कर उससे ऐसा न करने की प्रार्थना करू ? अगर आप कहें कि मुझे पिछला तरीका अख्तियार करना चाहिए तो फिर तो अपने मुसलमान भाई के साथ भी मुझे इसी तरह पेश आना चाहिए ।" यह तो कहीं नहीं लिखा है कि अहिंसावादी किसी आदमी को मार डाले। उसका रास्ता तो सीधा है - एक को बचाने के लिए वह दूसरे की हत्या नहीं कर सकता । उसका पुरुषार्थं और कर्त्तव्य तो सिर्फ विनम्रता के साथ समझाने-बुझाने में है । एक ही कार्य में अल्प-हिंसा और बहु-अहिंसा का सिद्धान्त जनतन्त्र की भावना देता है, विशुद्ध अहिंसा की भावना नहीं देता । अहिंसा के राज्य में थोड़ों के लए बहुतों की हिंसा जैसे सदोष है, वैसे ही बहुतों के लिए थोड़ों की हिंसा भी सदोष है । उसमें निर्दोष है— हिंसा से बचना तथा जीवन की अशक्यता, सामाजिक दायित्व और सम्बन्धों को निभाने के लिए हिंसा करनी पड़े, उसे अहिंसा न समझना । हिंसा दैहिक जीवन की प्रवृत्ति है । उसके नियमन से अहिंसा प्रकट होती है । देह-मोह छूटे बिना हिंसा न छूटे, यह दूसरी बात है किन्तु उसे अहिंसा मान बैठना दोहरी भूल है । इसके फलस्वरूप हिंसा को छोड़ने की वृत्ति पैदा नहीं होती । अहिंसा की आराधना पूरी न हो सके, फिर भी उसके स्वरूप ग्रहण की धारा पूरी होनी चाहिए । गृहस्थ अपने को अहिंसक मानते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे पूरी हिंसा को त्याग चुके हैं। उनकी गति अहिंसा की दिशा में होती है, वे हिंसा से यथासम्भव दूर हटना चाहते हैं; इसलिए वे अहिंसक हैं । इस प्रसंग पर महात्मा गांधी के विचार देखिए - 'आज हम ऐसी बहुत-सी बातें करते हैं, जिन्हें हम हिंसा नहीं मानते हैं, लेकिन शायद उन्हें हमारे बाद की पीढ़ियां हिंसा के रूप में समझें । जैसे हम दूध पीते हैं या अनाज पकाकर खाते हैं, उसमें जीव-हिंसा तो है ही । यह बिलकुल संभव है कि आने वाली पीढ़ी इस हिंसा को त्याज्य समझकर दूध पीना ओर अनाज पकाना बन्द कर दे । आज यह हिंसा करते हुए भी हमें यह दावा करने में संकोच नहीं होता कि हम अहिंसा-धर्म का पालन करते हैं।" १. हिन्द स्वराज्य, पृ० ७८ २. वही, पृ० ५६ ३. महादेव भाई की डायरी, पृ० २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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