SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १३७ __ अलबर्ट स्वीजर ने अहिंसा को संयममूलक बताकर करुणा से उसे अलग किया है। इस विचार का 'सूत्रकृतांग' में मार्मिक समर्थन मिलता है। भगवान् महावीर ने अपने समय की 'सातं सातेण विज्जइ"--सुख देने से सुख मिलता है-इस विचारधारा का खण्डन किया और बताया कि ऐसे विचार मोक्ष के साधन नहीं बनते। ___ जीवन में करुणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसमें कोई सन्देह नहीं किन्तु भूमिका बदलने पर उसका स्वरूप बदल जाता है । जननायक ऋषभनाथ जब राज्य-संचाजन की भूमिका पर थे, तब उन्होंने समाजहित के लिए विविध व्यवस्थाएं कीं। इसका जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में उल्लेख आता है। वहां टीकाकार ने एक प्रश्न खड़ा किया है-भगवान् ऋषभनाथ निरवद्य-निष्पाप रुचि वाले थे, फिर भी उन्होंने सावद्य-सपाप वृत्तियों को पैदा करने वाली कला आदि का उपदेश क्यों किया? इसका उत्तर है-ये कार्य उन्होंने करुणा-प्रधान वृत्ति से किए। जब व्यक्ति में किसी एक रस का प्राधान्य होता है, तब वह दूसरे रस की अपेक्षा नहीं रख पाता।' दूसरा कारण बताया है-दायित्व से पैदा होने वाली कर्तव्य-बुद्धि । इसकी श्रेष्ठता के दो प्रमाण हैं—(१) परार्थता और (२) बहुगुण और अल्प-दोष। वही कार्य श्रेष्ठ कार्य कहलाता है, जो दूसरों के लिए किया जाए और जिस कार्य में लाभ अधिक हो और अलाभ कम । ___ऋषभनाथ पहले राजा थे, इसलिए सभी प्रकार की व्यवस्थाएं करना उनका कर्तव्य था। भूमिका बदली । वे राज्य छोड़ मुनि बने । आत्म-साधना की। केवली बने तब जाना और देखा कि यह मोक्ष-मार्ग है, वही मुझे और दूसरों के लिए हित, सुख, निश्रेयस्, सर्वदुःखामोचक और परम-सुख का प्रापक होगा। फिर उन्होंने महाव्रत-धर्म का निरूपण किया। यहां मोक्ष-मार्ग में भी करुणा है, दूसरों के हित की बात है। अपनी अनुकम्पा की तरह दूसरों की अनुकम्पा भी मान्य है। किन्तु इसमें उसका (करुणा का) स्वरूप बदल जाता है। वह सुख-सुविधापरक न होकर व्रत-परक हो जाती है। भगवान् महावीर दुःख के आत्यन्तिक विच्छेद की साधना में लगे हुए थे। महात्मा बुद्ध करुणा-प्रधान थे। इनकी साधना और दृष्टि का भेद पन्यास मुनि श्री कल्याणविजय के शब्दों में देखिए–'महावीर का खास लक्ष्य स्वयं अहिंसक बनकर दूसरों को अहिंसक बनाने का था, तब बुद्ध की विचार-सरणि दुःखितों के दुःखोद्धार की तरफ झुकी हुई थी। ऊपर-ऊपर से दोनों का लक्ष्य एक-सा प्रतीत १. सूत्रक़तांग ३।४।६,७ २. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, २ वक्षस्कार, वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy