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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन चलने को राजी नहीं थे। वे अभय थे। लोकषणा उन्हें कभी विचलित नहीं कर सकी। सत्य की साधना में उनका जीवन बीता। उन्हें कटु सत्य भी सुधा-धूंट की तरह पीना पड़ा किन्तु वे असत्य के लिए सत्य की बलि करने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने मोह-अनुकम्पा को धर्म नहीं माना। भगवान महावीर ने गोशालक पर मोहानुकम्पा की। इसे वे धर्म कैसे मान सकते थे? यह बड़ी समस्या थी। भगवान् भगवद्-दशा में वीनराग और सब दोषों से परे होते हैं। साधनाकाल में उनमें भी राग-द्वेष की परिणति हो सकती है किन्तु साधारण लोग अति-भक्तिवश ऐसा नहीं सुन सकते। आचार्य भिक्षु भगवान् महावीर के अत्यन्त श्रद्धालु थे। फिर भी वे चले तत्त्व-विश्लेषण करने, इसलिए उन्हें कटु सत्य की कड़वी चूंट पीनी पड़ी। उन्होंने लिखा: 'छ लेश्या हुंती जद वीर मैं, हुंता आळू ही कर्म । छद्मस्थ चूका तिण समय, कोई मूरख थापै धर्म ॥' इस पद्य को उनके शिष्य भारमलजी स्वामी ने देखा। वे आचार्य भिक्षु से कहने लगे-'गुरुदेव ! यह पद्य बहुत कटु है।' आपने कहा-'असत्य तो नहीं है ?' वे बोले- 'है तो सत्य ।' आप बोले- 'सत्य है तब रहने दो।' लोगों में विरोध होना था सो हुआ ही। इसको लेकर आचार्य भिक्षु को बहुत कुछ सहना पड़ा। अनेक लोगों ने आचार्य भिक्षु को 'दया के विरोधी', 'दान के विरोधी' और 'भगवान् महावीर को चूका बताने वाले' के रूप में पहचाना। ___यह उनकी सही पहचान नहीं है। उनकी पहचान के लिए हमें कुछ गहराई में जाना होगा। उनका दृष्टिकोण समझना होगा। वे अहिंसा के बहुत बड़े भाष्यकार हुए हैं। उन्होंने दृष्टि दी है, उसे हम धर्म-संकट के प्रश्न खड़े कर टाल नहीं सकते । उनके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा-तत्त्व-दर्शन का मनन करें। तभी हम उनके कृतज्ञ बन सकेंगे। आचार्य भिक्षु का अध्यात्मवादी दृष्टिकोण तेरापंथ का इतिहास दान-दया के संघर्ष का इतिहास है। आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक -दो शताब्दियों में यह विषय बहुत चर्चा गया है। इसका अध्यात्मवाद एक गूढ़ा पहेली बना हुआ है। मूल तत्त्व तक पहुंचने वाले बिरले होते हैं । सिद्धान्त के बाहरी कलेवर में उलझने वाले सहसा नहीं सुलझते। आचार्य भिक्षु ने बताया-बलात् हिंसा छुड़ाना धर्म नहीं। लोभ या लालच डालकर हिंसा छुड़ाना धर्म नहीं। जीने की और मरने की इच्छा करना धर्म नहीं। असंयम का पोषण धर्म नहीं। पौद्गलिक शान्ति धर्म नहीं। वासना की पूर्ति धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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