SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ किसने कहा मन चंचल हैं हैं, उन सबके साथ अपना मस्तिष्क भी है। वह मस्तिष्कीय चेतना, कोषीय चेतना, जो हर कोष के पास है, उसे भी हम प्रेक्षा के द्वारा जागत करते हैं। समूचे शरीर को देखने का अर्थ है-चेतना के जो कोष सोये हुए हैं, कुंठित हैं, उन्हें जगाना। उनकी मूछी टूट जाए, यह अपेक्षित है । चैतन्य का कणकण जाग उठे । चैतन्य मूर्छा से मुक्त हो जाए। शरीर का प्रत्येक अवयव मूर्छा से ग्रस्त है। उस मूर्छा को तोड़ने का हमने कभी प्रयत्न ही नहीं किया। यदि ठीक प्रयत्न हो तो कोई कारण नहीं कि शरीर का कण-कण मन की शक्ति का स्वागत न करे, उसे स्वीकार न करे । शरीर का प्रत्येक कण चित्त के निर्देश को स्वीकार करने के लिए तत्पर है कि वह जाग जाए और चित्त के साथ उसका सम्बन्ध-सूत्र जुड़ जाए। किन्तु जब जगाने का प्रयत्न नहीं होता तब वे मूर्छा में रह जाते हैं और ऐसी स्थिति में चित्त का निर्देश उन तक पहुंच ही नहीं पाता । वे निष्क्रिय ही बने रह जाते हैं। __ शरीर के स्तर पर शरीर के कोष जागृत हैं और वे बराबर अपना काम करते हैं। हमारी नाड़ी-संस्थान में जितने ज्ञानवाही और क्रियावाही तन्तु हैं, वे शरीर-संचालन के क्षेत्र में अपना काम पूरा करते हैं । पैर में कांटा चुभा । तत्काल मस्तिष्क या पृष्ठरज्जु में संदेश पहुंचेगा। वहां से निर्देश मिलेगा। मांसपेशियां सक्रिय हो जाएंगी और हाथ कांटा निकालने के लिए आगे बढ़ जाएगा। यह काम इतनी शीघ्रता से सम्पन्न होता है कि हमें पता ही नहीं चलता । संदेश प्रेषण की सारी प्रक्रिया भीतर-ही-भीतर चलती है और कार्य निष्पन्न हो जाता है । यह इसलिए होता है कि सारे ज्ञान-तन्तु और क्रिया-तन्तु जागृत हैं। किन्तु सूक्ष्म सत्यों को जानने के लिए जिन ज्ञान-तन्तुओं को जागृत होना चाहिए, वे अभी सोये हुए हैं । इसलिए चैतन्य-केन्द्रों की प्रेक्षा का बारबार अभ्यास करते हैं जिससे कि मूच्छित ज्ञान-तन्तु सक्रिय हो जाएं, वे जाग उठे । इनके जागने से सूक्ष्म सत्यों की अतीन्द्रिय-चेतना विकसित हो जाती है। तब सूक्ष्म सत्यों के साथ सम्पर्क स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं रहती। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा केवल अपने शरीर को या शरीर की भिन्न-भिन्न पर्यायों को ही नहीं देखा जाता, किन्तु दूसरे पदार्थों को भी देखा जा सकता है। उनके साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। धर्म-ध्यान या विचयध्यान की पद्धति भी प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति है। इससे पदार्थ का आंतरिक स्वरूप, उसकी संरचना प्रत्यक्ष हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy