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________________ शक्ति की श्रेयस् यात्रा २६१ होना चाहते हैं, उसकी यही प्रक्रिया है। इसी प्रक्रिया के द्वारा आप जो चाहें वह साध सकते हैं, उसे उपलब्ध कर सकते हैं। यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। हम प्रेक्षा का अभ्यास करते हैं । हमारा ध्येय है-चैतन्य का अनुभव करना । यह ध्येय तो हमने चुन लिया किन्तु प्रेक्षा-ध्यान में हम सबसे पहले चमड़ी को, फिर हड्डियों को, फिर मांस को, फिर मज्जा और रक्त को, फिर और-और चीजों को देखते जाते हैं। शरीर में जितनी गंदगी है, उसको देखना प्रारम्भ करते हैं । ध्येय तो है आत्मा के अनुभव का और देखते हैं दूसरी-दूसरी चीजों को। यह विरोधी-सा लगता है। किन्तु यह विरोधी बात नहीं है। दिशा का भटकाव नहीं है। सही दिशा में हमारी गति का क्रम है । हमें चैतन्य का अनुभव करना है । चैतन्य क्या आकाश से टपकता है ? हम बन्दर तो नहीं हैं जिसने मगरमच्छ से कहा था कि तुम मेरा कलेजा चाहते हो पर मैं तो अपने कलेजे को साथ लेकर नहीं फिरता । उसे मैं वृक्ष पर टांग आया हूं। आदमी बन्दर नहीं है । वह नहीं कह सकता कि मैं मेरे अध्यात्म को, मैं मेरी सामायिक को कहीं अन्यत्र रखकर आया हूं। आदमी विकसित चेतना वाला प्राणी है। वह बन्दर की तरह अल्प विकसित प्राणी नहीं है। ____ जो व्यक्ति अपने जीवन में कुछ घटित करना चाहता है, अपने चैतन्य की यात्रा करना चाहता है, वह यह बहाना नहीं कर सकता कि मेरा चैतन्य कहीं वृक्ष पर टंगा हुआ है। सारा का सारा चैतन्य इसी शरीर के भीतर अवस्थित है। जब वह शरीर के भीतर है, तब उसे प्राप्त करने के लिए हमें शरीर की यात्रा करनी होगी। इस यात्रा का प्रारम्भ हमें चमड़ी से करना होगा। फिर एक-एक आवरण को पार कर हमें नाड़ी-संस्थान तक पहुंचना होगा। फिर हमें तेजस शरीर को पार करना होगा। तेजस शरीर हमारी समस्त प्रवृत्तियों का संचालक है। हमारी प्राणशक्ति तेजस शरीर के द्वारा प्राप्त होती है। उसे भी हमें पार करना होगा। जो प्राण हमें जीवनीशक्ति दे रहा है उसके स्पंदनों को पार करने के पश्चात हमें कर्म शरीर की यात्रा प्रारम्भ करनी होगी, जहां से सारी शक्तियां उमड़-उमड़कर आती हैं। ये सब छोटे-मोटे झरने हैं । महाप्रपात तो वही कम-शरीर है । सूक्ष्म कर्म-शरीर के एक-एक अणु पर, अनादिकाल से चिपके हुए संस्कारों को देखना होगा और एक-एक को पार करने का प्रयत्न करना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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