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________________ शक्ति की श्रेयस यात्रा २५७ सामायिक कभी नहीं घटेगी, उसका अवतरण नहीं होगा । जब यह मिथ्यादृष्टि बदल जाएगी, जब सम्यग्दृष्टि आ जाएगी कि ये विजातीय तत्त्व मेरे अंग नहीं हैं, ये सब 'पर' हैं, मेरे स्वत्व पर अधिकार जमाए हुए हैं, मुझे दुःख के चक्र में डाले हुए हैं-यह दृष्टि बनते ही सामायिक घटित होगी। ये विजातीय गुण-धर्म मुझे कष्ट देने वाले ठगने वाले, दुःख के चक्र में डालने वाले हैं-यह स्पष्ट होते ही, उसी दिन सामायिक के लिए उचित स्थान बन जाएगा। हम सामायिक को उपलब्ध करने के लिए मन की शक्तियों का प्रयोग करें। मन की शक्ति का प्रयोग अनावश्यक नहीं है । वह भ्रम नहीं है। मन की पहली शक्ति है-कल्पना । कल्पना की शक्ति का भी महत्त्व है। कल्पना-शक्ति का उपयोग किए बिना कोई भी आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता । ध्यान के अभ्यास-काल में हम बार-बार कहते हैं-"कल्पना मत करो, कल्पना मत करो, विकल्प मत करो ।" किन्तु काम के समय कल्पना की बहुत अपेक्षा होती है । निर्विकल्प शक्ति के द्वारा कल्पनाशक्ति का विकास होता है। आप यह न मानें कि निर्विकल्प दशा में और कल्पना की मनोदशा में कोई सर्वथा विरोध है। उनमें सर्वथा विरोध नहीं है। ध्यान-काल में कोई विकल्प न करें, कोई कल्पना न करें शक्ति के संवर्धन के लिए । ध्यानमुक्त काल में कल्पना करें । दोनों जरूरी हैं। ध्यान के विकास के लिए कल्पना करना बहुत जरूरी है। ध्यान में बैठने से पूर्व कल्पना करनी चाहिए। अर्हत् की कल्पना करें। एक स्वस्थ आकृति खींचें। मन में एक स्वस्थ आकृति का निर्माण करें। जब तक कोई आकृति स्पष्ट नहीं होती तब तक काम आगे नहीं बढ़ सकता। सबसे पहले कल्पना करनी होती है, एक चित्र का निर्माण करना होता है कि मैं यह बनना चाहता हूं। ध्यान में यह क्षमता है कि आपको अपने संकल्प के अनुसार ढाल सकता है। जैसा चाहें वैसा बनें-इसमें ध्यान माध्यम बनता है। एक व्यक्ति चाहता है कि मैं अमुक व्यक्ति को पीड़ित करूं । ऐसी शक्ति भी ध्यान के द्वारा ही प्राप्त होती है, एकाग्रता के द्वारा ही प्राप्त होती है । एकाग्रता के द्वारा शक्ति को अजित कर अनेक व्यक्ति दूसरों का उत्पीड़न करते हैं, दूसरों को सताते हैं, लुटते हैं और मार भी डालते हैं। यह शक्ति भी ध्यान के द्वारा प्राप्त होती है। कोई व्यक्ति किसी का भला करना चाहे, अच्छा करना चाहे तो यह शक्ति भी ध्यान के माध्यम से ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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