SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शक्ति की श्रेयस् यात्रा २५५ पलकों का निमेष होता है । यह उन्मेष और निमेष का चक्र चलता रहता है । आत्मिक उन्मेष जागा, किन्तु वह स्थायी कैसे हो, यह महत्त्वपूर्ण बात है । जो ज्योति जली, वह अखंड ज्योति कैसे बने, शाश्वत ज्योति कैसे बने, उसमें निमेष आए ही नहीं, सदा उन्मेष ही रहे, यह कैसे संभव हो सकता है ? इसके लिए सान्निध्य की जरूरत है । इसके लिए मन की शक्तियों का प्रयोग और संकल्प शक्ति जरूरी है । सबसे पहली बात है सान्निध्य की । कोई व्यक्ति समता की यात्रा प्रारंभ करता है, यह अनजानी यात्रा है, अज्ञान यात्रा है । यह वह मार्ग है "जिस पर वह पहले कभी चला नहीं है । यह वह दिशा है जिस दिशा में पैर कभी आगे नहीं बढ़े हैं । सारा अज्ञात ही अज्ञात । अज्ञात मार्ग में, अज्ञात दिशा में सहारा अपेक्षित होता है । अन्यथा व्यक्ति भटक जाता है । जहाजों के लिए भी दिशा-निर्देश यंत्र की आवश्यकता होती है, जो दिशा का ठीक निर्देश दे सके। इसी प्रकार इस अज्ञात यात्रा में किसी-न-किसी व्यापक या गमक साधन की जरूरत होती है, जिससे ठीक दिशा का पता लग सके और सही दिशा में यात्रा हो सके । अध्यात्म के इस अनजाने मार्ग पर पादन्यास करने से पूर्व साधक - सान्निध्य की याचना करता है । वह कहता है--" करेमि भंते ! सामाइयं"भगवन् ! मैं सामायिक में उपस्थित हो रहा हूं, मैं सामायिक कर रहा हूं, आपकी सन्निधि मुझे प्राप्त हो, आपका सान्निध्य मुझे प्राप्त हो । मैं आपकी साक्षी से इस मार्ग पर चल पड़ा हूं ।" वह सामायिक करता है भगवान् की साक्षी से । वह पहले सान्निध्य को अपने में उतारता है । वह उस आत्मा के सान्निध्य को उपलब्ध होता है जिस आत्मा ने सामायिक के चरम शिखर पर पहुंचकर सामायिक के उत्कर्ष को प्राप्त कर लिया है । ऐसे सान्निध्य को प्राप्त करने से कोई लाभ नहीं होता जिसने स्वयं सामायिक का अभ्यास नहीं किया है । ऐसा सान्निध्य और afare असामायिक की ओर ले जाएगा । सान्निध्य का बहुत बड़ा प्रभाव होता है । कोई एक व्यक्ति सामायिक के पथ पर चल रहा है और उसे सान्निध्य मिलता है असामायिक की ओर ले जाने वाले व्यक्ति का, विषमता की ओर ले जाने वाले व्यक्ति का तो रास्ता छूट जाएगा और व्यक्ति भटक जाएगा । वह कहेगा - " कहां जा रहे हो ? हिंसा और उत्पीड़न किए बिना रोटी कमाकर कैसे खा सकोगे ? क्या बिना पैसे के बाल-बच्चों को पढ़ा पाओगे ? क्या रहने के लिए मकान बना पाओगे ? क्या आधुनिक सुख-सुविधाओं का उपभोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy