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________________ आजादी की लड़ाई २०५ उसकी गति मंद हो जाती है । उसका भटकाव बंद हो जाता है। वाकगुप्ति का भी बहुत महत्त्व है । तीनों गुप्तियां साथ-साथ चलें । ये साधक के कवचरूप हैं। इन तीनों कवचों से कवचित साधक कभी नहीं हारता । वह विजयी होता है । शक्ति का क्षय नहीं होता। शक्ति बराबर बनी रहती है। साधक का उत्साह क्षीण नहीं होता। वह प्रत्येक परिस्थिति के साथ लड़ने में सक्षम होता है। भगवान् महावीर ने कहा-"आत्मा से लड़ो। बाहर लड़ने से क्या होगा ? मोह और मूर्छा से लड़ो। यह दुर्लभ लड़ाई है । इस युद्ध में सम्मिलित होने का अवसर किसी-किसी को प्राप्त होता है, सबको नहीं । 'जुद्धारियं खलु दुल्लहं'-ऐसे युद्ध का अवसर कभी-कभी मिलता है।" आपने युद्ध प्रारंभ कर दिया। रणांगण में उतर गए । पर आगे बढ़ा दिए । अब यह कदम कभी पीछे न हटे। आप आगे बढ़ते जाएं। अपने पुरुषार्थ का पूरा उपयोग करें। अपनी शक्ति को काम में लें और जो कुछ बीच में आए उसे हटाते चलें । बीच में निराश न हों। सदा आशावान् रहें । हार सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाएगी। मंजिल पर पहुंचने पर सारे द्वन्द्व समाप्त हो जाएंगे। वहां निम्न स्थितियों का सारा घेरा टूट जाता है। वहां केवल विजय ही विजय, उच्चता ही उच्चता, सफलता ही सफलता । हम अपने पुरुषार्थ का, अपनी श्रद्धा का, अपने समर्पण का और अपनी सत्यनिष्ठा का पूरा-पूरा उपयोग करें और चेतना को उस स्थिति तक ले जाएं जहां जाने पर फिर चेतना नीचे नहीं उतरती, वह ऊर्वारोहण ही करती है। अन्त में वह परम सत्ता को उपलब्ध हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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