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________________ मानसिक संतुलन १६१ सुखद अनुभूति का कारण बनता है किन्तु परिणाम में वह दुःख देता है तो समझ लेना चाहिए कि वह सुख नहीं है। सुख वही हो सकता है जो वर्तमान में भी, प्रयोग-काल में भी सुख देता हो और परिणाम-काल में भी सुख देने वाला हो । पारिभाषिक शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जो आपातभद्र और परिणामभद्र हो, वही सुख है। युद्ध जीतने वाले सुख का अनुभव करते हैं । किन्तु एक युद्ध कितने संकटों को जन्म देता है, यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होगा कि युद्ध दुःखों का ही सर्जक है, सुखों का नहीं । विजेता भी दुःख भोगता है और पराजित भी दुःख भोगता है, वर्षों तक उन दुःखों से छुटकारा नहीं मिलता। विजयोल्लास एक पागलपन है, मादकता है, उन्माद है। यह सुख नहीं हो सकता। दोनों ओर ध्वंस ही ध्वंस । कोई सुख नहीं, कोई प्रसन्नता नहीं। वह सुख, सुख नहीं होता जिसका परिणाम दु:खमय हो । वह सुख, सुख नहीं होता जो दुःखों की लंबी शृंखला को उत्पन्न करे । वही सुख सुख होता है जिसकी निष्पत्ति सुखद हो । यह कसौटी है । इसके आधार पर हम समझे कि सुख क्या है और दुःख क्या है ? अध्यात्म-साधना सुख देने वाली है या दुःख देने वाली ? अध्यात्म-साधना की निष्पत्ति सुखद है या दुःखद ? तनाव दुःख पैदा करता है । तनाव आवेग पैदा करता है। अधिकांश आवेग तनाव से उत्पन्न होते हैं। तनाव में होने का अर्थ है आवेग में होना और आवेग में होने का अर्थ है तनाव में होना । तनाव से शक्तियां क्षीण होती हैं । तनाव की स्थिति में व्यक्ति गालियां देने लग जाता है, चिड़चिड़ा हो जाता है । तनाव में क्या-क्या नहीं होता? जो नहीं होने का होता है, तनाव में वह घटित हो जाता है । सारे आवेग तनाव में जन्मते हैं। ___ मानसिक तनाव शारीरिक संतुलन को बिगाड़ देता है । सब कुछ असंतुलित हो जाता है। तनाव से केवल आवेग ही पैदा नहीं होते, बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं । शरीर में तनाव होता है तब रक्त की गति में तीव्रता आ जाती है । शरीर में तनाव होता है तब हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। शरीर में तनाव होता है तब ग्रंथियों का स्राव अधिक होने लगता है और वह अनेक विसंगतियां उत्पन्न करता है। शरीर में तनाव होता है तब एड्रीनल ग्रन्थि सबसे अधिक प्रभावित होती है और वह अतिरिक्त स्राव को छोड़ती है । शरीर में अनेक विकृतियां पैदा हो जाती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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