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________________ मानसिक संतुलन "आहंसु विज्जा चरणं पमोक्कणं'-दुःखमुक्ति के लिए विद्या और आचार का अनुशीलन करें-यह हमारी साधना का मूल सूत्र है। मनुष्य का सारा प्रयत्न दुःखमुक्ति के लिए होता है। उसकी सारी कल्पनाएं, सारी योजनाएं, सारी चेष्टाएं केवल दुःख से छुटकारा पाने के लिए होती हैं । अध्यात्म की साधना करते हैं तो उसका भी एकमात्र उद्देश्य यही है कि दुःख से पूरा छुटकारा मिल जाए। यदि दुःखमुक्ति नहीं होती है तो अध्यात्म की साधना व्यर्थ है। फिर कोई भी इस दिशा में गतिशील नहीं होगा। एक प्रश्न होता है कि यदि दुःख से मुक्त होना है तो फिर हम कुछ काम करें। आंखें मूंदकर ध्यान में क्यों बैठे ? निकम्मे क्यों बैठे? निकम्मे बैठने से पदार्थों की प्राप्ति नहीं होगी और पदार्थों के अभाव में दुःख नहीं मिट सकता । ध्यान में बैठे रहना, इस दृष्टि से निकम्मापन है। इससे दुःखमुक्ति कैसे हो सकती है ? यह विरोधाभास-सा प्रतीत होता है। सभी लोग यह मानते हैं कि उत्पादक श्रम के बिना दुःख मिट नहीं सकता । भूख लगती है। वह रोटी के खाने से मिट जाती है। सर्दी लगती है। कपड़े से वह मिट जाती है । भूख दुःख है, सर्दी दुःख है। इनको मिटाने का उपाय है-रोटी और कपड़ा। यह एक वास्तविकता है । साधना में बैठने वाले इसको नकार कर काल्पनिक जगत् में विहरण करते हैं । क्या यह अफल-प्रयत्न नहीं है ? क्या अध्यात्म कोरी कल्पना नहीं है। __हम यथार्थ का जीवन जीएं, वास्तविकता से आंखमिचौनी न करें, वास्तविकता को भोगें-यह आज के युग की सचाई है। इस वास्तविकता को समझकर हम दुःखों को कम करने का प्रयत्न करें, कष्टों को मिटाएं । अन्यथा हम कल्पनाओं में बहते रहेंगे, दुःख बढ़ेगा, मिटेगा नहीं। यह लोक-प्रवाद है । इसे हम समझते हैं। अब हमें यह समझना है कि अध्यात्म-साधना में हम ऐसा कौन-सा प्रयत्न कर रहे हैं जिससे दुःखभक्ति हो? धार्मिक लोग, अध्यात्म की साधना करने वाले साधक यह घोषणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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