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________________ १५६ किसने कहा मन चंचल है रहता है । मानो कि वह तनाव को निमंत्रण देकर ही उठा हो । और जब वह रात में सोता है तब भी भारी मन लेकर सोता है। तनाव से भरा रहता है । तनाव को सिरहाने देकर ही सोता है। उसे सारे दिन झूठ को छिपाने के लिए योजना बनानी पड़ती है। किस झूठ को कैसे छुपाया जाए, यह उसे पहले से ही सोचना पड़ता है । यह तनाव पैदा करता है । झूठ बोलने वाला झूठ बोलने से पूर्व भी चिंता करता है, झूठ बोलते समय भी चिन्ता करता है और झूठ बोलने के बाद भी चिन्ता करता है । पहले इसलिए चिन्ता करता है, कि मैं ऐसा झूठ बोलूं जो दूसरे के सामने प्रकट न हो। वह चिंता का जाल बिछाता है। झूठ भी ऐसा बोलूं जो सच्चा झूठ हो । दूसरों को सच्चा लगे । जब वह झूठ बोलता है तब यह चिन्ता, यह भय बना रहता है कि कहीं मुख मुद्रा से वह वह प्रकट न हो जाए । सामने वाला भांप न ले कि यह झूठ है, मिथ्या है। इसलिए वह कृत्रिम स्वाभाविकता बनाए रखने का प्रयत्न करता है । झूठ बोलने के बाद उसे यह चिन्ता सताती है कि झूठ बोल तो गया, किन्तु कहीं उसका भेद खुल न जाए, कोई जान न ले । इसलिए पहले चिन्ता, बोलते समय चिन्ता और बोलने के बाद चिन्ता । यह क्रम टूटता ही नहीं । ऐसी स्थिति में आज का व्यापारी तनावग्रस्त न हो - यह कैसे संभव हो सकता है ? यह प्रबल रौद्र ध्यान की स्थिति है । रौद्र ध्यान से उत्पन्न भावनात्मक तनाव चार स्थितियों में उत्पन्न होता है । पहली स्थिति है - हिसानुबंधी - हिंसा का अनुबंध, दूसरी है - मृषानुबंधी — झूठ का अनुबंध, तीसरी है— स्तेयानुबंधी - चोरी का अनुबंध और चौथी स्थिति है - संरक्षणानुबंधी - परिग्रह के संरक्षण का अनुबंध । ये सारी बातें तनाव उत्पन्न करती हैं । भावनात्मक तनाव पैदा करने के लिए, आतं रौद्र ध्यान मूल कारण हैं । आज के युग में शारीरिक तनाव एक समस्या है। मानसिक तनाव उससे उग्र समस्या है और भावनात्मक तनाव सबसे विकट समस्या है, भयंकर समस्या है | मानसिक तनाव से भी इसके परिणाम बहुत भयंकर होते हैं । इस समस्या से निबटने के लिए हमने धर्मध्यान का सहारा लिया है, हमने इसका द्वार खोला है । धर्मध्यान के अभ्यास से आतं- रौद्र ध्यान और शुक्लध्यान -- ये अपने-आप में जीने के साधन हैं, अपने भाव में रहने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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