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________________ मानसिक तनाव का विसर्जन इस विधि से कार्य किया। कार्य चलता रहा। शक्ति लगी, किन्तु उसकी क्षीणता का अनुभव नहीं हुआ । स्मृति से छुटकारा पा जाने से शक्ति का संवर्धन होता है । वहां कम शक्ति क्षीण होती है । शक्ति कम क्षीण हो और कार्य अधिक हो, यह है उसकी व्यवस्था और निष्पत्ति । कार्यान्तर में प्रवेश करना-- यह है विश्राम । इसी को मैंने विश्राम माना । शक्ति की सुरक्षा हो गयी। एक सूत्र और काम में लिया । एक कार्य करके उठे । मन में यह सूत्र जम गया कि 'निःशेषम्'--कुछ भी शेष नहीं है। जो करना था वह सारा संपन्न हो गया, अब कुछ भी बाकी नहीं है। यदि हम शेष की अनुभूति संजोए रहेंगे तो तनाव उत्पन्न होगा। 'कल मुझे यह करना है, वह करना है'-यह शेष का चिन्तन तनाव पैदा करता है। जब यह सूत्र हाथ लग गया कि 'निःशेषम्'---कुछ भी बाकी नहीं। . जो करना था सब संपन्न हो गया। यदि करेंगे तो कल से नया अध्याय प्रारंभ करेंगे । आज कुछ भी शेष नहीं है । यदि कल रहेंगे तो आगे करेंगे, यदि नहीं रहेंगे तो करने की बात ही प्राप्त नहीं होगी। संपन्न । सारी यात्रा संपन्न । इस स्थिति में तनाव को अवकाश ही नहीं मिलता। मन भारमुक्त होता है। तनाव विसजित और मन शांत । जब तक 'कल करेंगे' की बात बनी रहती है तब तक 'यह करना' 'वह करना'-यह सूची इतनी लंबी हो जाती है कि उसका कहीं भी अंत नहीं आता। वह आगे से आगे फैलती जाती है। इससे दिमाग भारी बना रहता है। वह कभी हल्का नहीं हो पाता। हम यह अनावश्यक भार क्यों ढोएं ? हम जब सचाई को जानते हैं कि संसार में किसी भी व्यक्ति का काम कभी पूरा नहीं हुआ। काम शेष रहा और वे व्यक्ति चल बसे । मरते समय रावण ने भी कहा--मेरी मन की बातें मन में ही रह गयीं। मैं यह करना चाहता था, वह करना चाहता था। मन की मन में ही रह गयी। रावण की ही यह बात नहीं है, सबकी यही बात है। जो अध्यात्म का जीवन नहीं जीता, वह मरते समय ऐसा ही सोचता है। अध्यात्म का जीवन जीने वाले व्यक्ति समाधिपूर्ण मृत्यु का वरण करते हैं । वे संतोष के साथ मरते हैं। वे यही सोचते हैं-'कुछ भी शेष नहीं रहा। जो करना था, वह सारा संपन्न हो गया। जीवन की यात्रा सुखपूर्वक संपन्न हो रही है, मरण भी समाधिपूर्ण हो रहा है, सुख से मर रहे हैं, पीछे कुछ भी शेष नहीं है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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