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________________ किसने कहा मन चंचल है ज्ञान भी उसे पागल बना देता है, मूर्छा में डाल देता है। संतुलन आवश्यक होता है। ज्ञान का विभाग इस बात को संभालता है कि ज्ञान उतना ही बाहर जाना चाहिए जितना कि क्षमता का विकास है। पारिभाषिक शब्दावली में कहा गया है कि जितना अन्तराय कर्म का क्षयोपशम होगा, उतना ही ज्ञानावरण का क्षयोपशम होगा, उतना ही ज्ञान काम में आएगा। शिष्य ने पूछा- "भंते ! इन्द्रियों की उपलब्धि कैसे होती है ?" गुरु ने कहा-'ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से इन्द्रियों की उपलब्धि होती है । अन्तराय कर्म इंसुलेशन की भांति जुड़ा ही रहेगा । यदि अन्तराय कर्म को छोड़कर केवल यह कहा जाए कि इन्द्रियों की उपलब्धि का मूल हेतु है-ज्ञानावरण और दर्शनावरण का क्षयोपशम तो यह उत्तर अधूरा होगा । ज्ञान का विभाग और दर्शन का विभाग ज्ञान और दर्शन का नियंत्रण करता है तो अन्तराय का विभाग क्षमता का नियंत्रण करता है । वह इस बात को सोचता है कि व्यक्ति की मूर्छा कितनी टूटी, पागलपन कितना टूटा, मोह का आवरण कितना हटा। मोह प्रबल हो और यदि क्षमता को अधिक जगा दिया जाता है तो संतुलन बिगड़ जाता है। फिर अणुबम बनता है और विश्व के संहार की बात सामने आ जाती है। शक्ति का विकास उतना ही हो, जितना कि मोह टूटा है। ऐसा होने पर ही संतुलन बना रह सकता है । जब ज्ञान का विकास, दर्शन का विकास और क्षमता का विकास संतुलित होता है तब उसके अनुपात में मूर्छा टूटती है । बीतरागता का विकास या राग-द्वेष के मल से मुक्ति पाने का विकास भी उसके संतुलन से प्रकट होता है। ये चारों विभाग-ज्ञान का विभाग, दर्शन का विभाग, अन्तराय का विभाग और मोह का विभाग--अपना-अपना काम संभाले हुए हैं। सूक्ष्म शरीर की संरचना में इन चारों का बहुत बड़ा योग है। चारों विभागों के कार्य स्वतः संचालित हो रहे हैं या ये चारों इन कामों को करते हैं, आप किसी भी भाषा में कहें, कोई अन्तर नहीं आता । सूक्ष्म शरीर के चार विभाग और हैं-नाम, गोत्र, आयुष्य और वेदनीय । इन सबमें बड़ा विभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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