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________________ शक्ति जागरण : मूल्य और प्रयोजन ११६ में लटक जाता है । घनत्व की भावना के कारण ही हम जमीन पर टिके हुए हैं । जब विरलता की भावना पुष्ट हो जाती है तब शरीर ऊपर उठ जाता है | यह कोई चमत्कार नहीं, प्रकृति का नियममात्र है । स्पर्श आठ हैं-शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष, हल्का भारी, और कर्कश - मृदु । इसमें स्निग्ध- रूक्ष और शीत-उष्ण-ये चार स्पर्श मौलिक हैं । शेष चार स्पर्श संयोग से बनते हैं । अतः हल्का, भारी - यह वस्तु का मूल धर्म नहीं है । यह संयोग के कारण होता है । परमाणुओं की स्थूल परिणति के कारण तथा अपनी अनुभूति के कारण ऐसी स्थूलता आती है । यदि यह परिजति बदल जाए तो स्थूलता समाप्त हो जाती है, गुरुता समाप्त हो जाती है, लघुता भी समाप्त हो जाती है, तब न कोई हल्का होता है और न कोई भारी । केवल अगुरुलघु । गुरुता और लघुता, भारीपन और हल्कापन - ये मूल बातें नहीं हैं, जब हम इस सत्य को समझ लेते हैं तब आकाश में उठना कोई बड़ी बात नहीं रह जाती है । जादूगर अनेक चमत्कार दिखाते हैं । जादूगर के लिए कोई चमत्कार नहीं है | चमत्कार उसके लिए है जो जादू नहीं जानता । जब साधारण व्यक्ति भी जादू के नियम जान लेता है तब उसके लिए चमत्कार जैसी कोई बात ही नहीं रहती । सारे चमत्कार समाप्त हो जाते हैं । कुछेक रसायनों का प्रयोग कर सफेद पन्नों पर कुछ लिखा | अक्षर नहीं दिखेंगे। पन्ने को पानी में डुबोते ही अक्षर अभिव्यक्ति हो जाएंगे । देखने वाले को आश्चर्य-सा लगेगा । किन्तु जो व्यक्ति इस विधि को जानता है उसके लिए कोई चमत्कार नहीं है । जिस दिन पहली बार आग जली होगी, न जाने कितना बड़ा चमत्कार लगा होगा । अरे ! यह क्या ? यह प्रकाश ! यह ताप ! आज आग चमत्कार की वस्तु नहीं है, क्योकि सभी उसके नियम को जानते हैं । वह कैसे उत्पन्न होती है और कैसे बुझती है, सब जानते हैं । ध्यान कोई चमत्कार नहीं है । अध्यात्म कोई चमत्कार नहीं है । साधना कोई चमत्कार नहीं है । केवल प्रकृति के नियमों की समझ है । आत्मा, शरीर की शक्ति और उपकरणों की शक्ति - इनके नियमों की समझ है । जो इनके नियमों को समझ लेता है, वह बहुत सारी नयी बातें करने में सक्षम होता है । सामान्य आदमी उन्हें नहीं कर सकता । जो इनके नियमों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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