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________________ लड़का कहता है कि इसका जल्दी उपचार करा लें, अन्यथा घाव बढ़ जायेगा। वकील लड़का कहता है-जल्दबाजी न करें। जख्म बढ़ने दें, उसके बाद मैं अदालत में दावा कर हर्जाने की मोटी रकम वसूलूंगा। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि किसका कहा मानूं।' स्रोत कहां है ? इन दो तरह के विचारों का स्रोत कहां से आ रहा है ? निश्चय ही इनके मूल में स्वार्थ है। दोनों ही विचार स्वार्थ से जुड़े हैं। पदार्थ के साथ स्वार्थ और स्वार्थ के साथ विचार अनुबंधित हैं। हमारे विचार की इतनी प्रणालियां, पद्धतियां बन गयीं कि उन सबके पीछे पदार्थ ही जुड़ा है। दार्शनिक जगत् में इस पर बहुत चिंतन हुआ है। औद्योगिक और सामाजिक क्षेत्र में भी विचारों का बहुत विकास हुआ है। क्या केवल इनका विकास ही करते जाना है ? नहीं, हमें संयम भी करना होगा। केवल विचार का विकास मान्य नहीं है। एक सीमा तक ही विकास की बात मान्य है। उससे आगे विचार का संयम भी मान्य करना होगा। केवल विचार के विकास से समाज कहां चला जायेगा, कहा नहीं जा सकता। सीमा के अतिक्रमण परिणाम अध्यात्म के आचार्यों ने एक दूसरा रास्ता भी दिखाया-केवल विचार का विकास ही मत करो। एक सीमा के बाद विचार का संयम करना भी सीखो। यह बहुत आवश्यक है। समस्या यह है-विचार का संयम नहीं हआ, ब्रेक लगाने की बात कहीं भी नहीं आयी। परिणामस्वरूप विचार इतना आगे बढ़ गया कि वह आज आदमी को भटका रहा है। ब्रह्मचर्य का उदाहरण लें। मनोविज्ञान की भाषा में सेक्स आदमी की एक मौलिक मनोवृत्ति है। यह प्रत्येक प्राणी में होती है। आदमी ने विचार की दृष्टि से इसका विकास किया और यहां तक विकास किया कि मुक्त यौनाचार की बात कही जा रही है। सेक्स पर बहुत पहले से ही चिंतन चला आ रहा है। समय-समय पर अलग-अलग धारणाएं आईं और आज चिंतन मुक्त यौनाचार तक पहुंच गया है। सीमा को लांघने के परिणाम भी सामने आने शुरू हो गये हैं। भयंकरतम बीमारी तक आदमी पहुंच गया है। आंखें खुल रही हैं और सोचा विचार को देखना सीखें / १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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