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________________ अहिंसा जीवन-यापन और हिंसा को अलग-अलग करना शक्य नहीं है फिर भी सम्यक्दर्शनी व्यक्ति चिन्तन करता है-हिंसा का अल्पीकरण कैसे हो ? यह चिंतन अहिंसा के विकास का महत्त्वपूर्ण प्रस्थान है । अल्पीकरण का प्रथम सूत्र बनता है अनावश्यक हिंसा का वर्जन । मनुष्य अपने प्रमाद, मोह और लालसा के कारण अनावश्यक हिंसा बहुत करता है । अहिंसा की जीवनशैली के आधार पर जीने वाले व्यक्ति के सामने यह सूत्र वाक्य टंकित रहना चाहिए - हिंसा का अल्पीकरण हो । अनावश्यक हिंसा न हो क्रूरता अनावश्यक हिंसा का कारण है । पर हत्या और भ्रूण हत्या में क्रूरता प्रत्यक्ष दिखाई देती है । आत्महत्या में प्रत्यक्ष दिखाई देता है आवेश । प्रसाधन-सामग्री में प्रत्यक्ष दिखाई देता है, शृंगार और सौंदर्य का मनोभाव, किन्तु उसकी पृष्ठभूमि में क्रूरता छिपी रहती है । अनावश्यक हिंसा का वर्जन करने वाला मिट्टी, पानी और वनस्पति का उच्छृंखल उपयोग नहीं करता । वह उनके उपयोग में सीमा और विवेक का प्रयोग करता है । अहिंसा की जीवन-शैली के फलित हैं9. संवेदनशीलता का विकास । २. पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम । ३. प्राणी मात्र के प्रति मैत्री का क्रमिक विकास । समण - संस्कृति जैन जीवनशैली का प्राण तत्त्व है - समण संस्कृति । समण प्राकृत भाषा का शब्द है । उसके संस्कृत रूप तीन बनते हैं - समन, शमन, श्रमण । जिसका मन पवित्र है, जो सब मनुष्यों और जीवों को अपने समान मानता है, वह समन होता है । जो अपने आवेगों और आवेशों को उपशांत रखना जानता है, वह शमन होता है । जो तपस्वी है, श्रमनिष्ठ और स्वावलम्बी है, वह श्रमण है 1 क्या तुम इसे पसंद करोगे - तुम्हें कोई दूसरा छोटा या हीन समझे और अपने आपको बड़ा या ऊँचा समझे ? जीवन की शैली कैसी हो ? / ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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