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________________ वर्ग १, बोल १४ | ३५ १४. उपयोग के दो प्रकार हैं१. साकार उपयोग २. अनाकार उपयोग साकार उपयोग के आठ प्रकार हैं पांच ज्ञान १. मतिज्ञान ४. मनःपर्यवज्ञान २. श्रुतज्ञान ५. केवलज्ञान ३. अवधिज्ञान तीन अज्ञान १. मति अज्ञान २. श्रुत अज्ञान ३.विभंग अज्ञान अनाकार उपयोग के चार प्रकार हैं १. चक्षुदर्शन ३. अवधिदर्शन २. अचक्षुदर्शन ४. केवलदर्शन चौदहवें बोल में उपयोग के दो प्रकार बताए गए हैं—साकार उपयोग और अनाकार उपयोग । उपयोग शब्द जैनों का पारिभाषिक शब्द है । इसका जिस अर्थ में जैन दर्शन में प्रयोग हुआ है, अन्यत्र कहीं नहीं हुआ है ।सामान्यत: इसका अर्थ किया जाता है-व्यवहार । उदाहरणार्थ-गर्मी में कैसे वस्त्रों का उपयोग लाभदायक होता है ? इस स्थान का उपयोग किस रूप में हो सकता है आदि। जैन आगमों में उपयोग शब्द का प्रयोग जीव के लक्षण अर्थ में हुआ है-'जीवो उवओगलक्खणो' । तत्त्वार्थ सूत्र में 'उपयोगो लक्षणम्' कहकर उक्त तथ्य को स्वीकृति दी गयी है। अब प्रश्न उठता है कि उपयोग क्या है? 'जैनसिद्धान्त-दीपिका' में इस प्रश्न को उत्तरित करते हुए कहा है- 'चेतनाव्यापार: उपयोगः' ज्ञान और दर्शन-रूप चेतना का जो व्यापार है, प्रवृत्ति है, वह उपयोग है। उपयोग जीव का लक्षण है, इसलिए प्राणीमात्र में इसकी सत्ता है। सत्तागत समानता होने पर भी हर प्राणी के उपयोग की अपनी-अपनी सीमा है। अविकसित प्राणियों का उपयोग अव्यक्त होता है और विकसित प्राणियों का व्यक्त । इसकी अभिव्यक्ति में कर्मों का विलय या हल्कापन निमित्त बनता है। उपयोग की प्रबलता ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के क्षय या क्षयोपशम-सापेक्ष है। जितना-जितना क्षय और क्षयोपशम, उतना-उतना प्रशस्त उपयोग । सर्वोत्कृष्ट ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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