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________________ जैन दर्शन और परामनोविज्ञान (अणुव्रत एवं युवादृष्टि में प्रकाशित), आचार्य महाप्रज्ञ कृत जैन दर्शन : मनन और मीमांसा, जैन योग, चित्त और मन तथा अभ्युदय । चतुर्थ अध्याय विज्ञान के सन्दर्भ में जैन जीवन शैली के मुख्य आधार हैं-मुनि सुखलाल कृत विज्ञान के सन्दर्भ में जैन धर्म तथा साधना का सोना : विज्ञान की कसौटी, आचार्य महाप्रज्ञ कृत प्रेक्षाध्यान : आहार-विज्ञान, जैन धर्म : अह और अर्हताएं, शक्ति की साधना, मुनि महेन्द्रकुमार और जेठालाल झवेरी कृत प्रेक्षा ध्यान : स्वास्थ्य विज्ञान (भाग १), गोपीनाथ अग्रवाल कृत शाकाहार या मांसाहार तथा डॉ. वीरेन्द्र सिंह कृत जर्दा-धूम्रपान बीसवीं सदी का निर्मम हत्यारा। __ पञ्चम अध्याय जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा का आधार है-आचार्य महाप्रज्ञ-कृत जैन दर्शन और अनेकान्तवाद । षष्ठ अध्याय जैन दर्शन और विज्ञान में अमूर्त अचेतन विश्व-मीमांसा का आधार है-मुनि महेन्द्र कुमार कृत विश्व प्रहेलिका। सप्तम अध्याय विश्व का परिमाण और आयु का आधार है-मुनि महेन्द्र कुमार कृत विश्व प्रहेलिका। __ अष्टम अध्याय जैन दर्शन और विज्ञान में पुद्गल तथा नवम अध्याय जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु का आधार है-जेठालाल एस. झवेरी तथा मुनि महेन्द्र कुमार कृत Microcosmology : Atom in Jain Philosophy and Modern Science तथा तीर्थकर (भौतिकी विशेषांक) के कुछ लेख । ___ आधारभूत ग्रंथों की सामग्री को विद्यार्थी के लिए सुगम बनाने की दृष्टि से तथा संक्षिप्तीकरण के उद्देश्य से परिवर्तित किया गया है। जिस कोटि की विषय-वस्त यहां प्रतिपाद्य है, उसके साथ यदि समुचित न्याय करना हो तो प्रत्येक अध्याय के लिए पूरे ग्रंथ का प्रणयन भी कदाचित् अपर्याप्त होगा। पर विद्यार्थी की अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक अध्याय की सामग्री को लगभग ३०-४० पृष्ठों में समेटने का प्रयत्न किया गया है। कहीं-कहीं इस सीमा का उल्लंघन भी हुआ है, पर विषय-वस्तु के धैविध्य ने ऐसा करने के लिए हमें बाध्य किया है। फिर भी कुल मिलाकर बी.ए. के तृतीय वर्ष के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुरूप समग्र सामग्री संगुम्फित कर हम उसे शिक्षा-जगत् को समर्पित कर रहे हैं। हमारे परमाराध्य आचार्यश्री तुलसी की सतत प्रेरणा एवं मार्ग-दर्शन ही इस दुरुह कार्य की सफल सम्पन्नता के लिए सर्वाधिक श्रेयोभाक है। इसके लिए हम उनके प्रति चिरऋणी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ का अध्यात्म और विज्ञान के सामञ्स्य/तुलना का अपना एक मौलिक दृष्टिकोण रहा है जो समसामयिक दार्शनिकों में भी दुर्लभ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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