SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. अध्यात्म और विज्ञान (१) धर्म और विज्ञान धर्म और विज्ञान-ये दो नहीं, वस्तुत: एक ही विषय हैं। धर्म स्वर्य विज्ञान है। एक वैज्ञानिक यहां हिन्दुस्तान में बैठा हुआ किसी प्रकार का प्रयोग या अन्वेषण करता है और जो निष्कर्ष उसके प्रयोग का निकलेगा, वही निष्कर्ष अमेरिका में बैठा हुआ एक वैज्ञानिक उसी तरह का प्रयोग करके प्राप्त करेगा। हजार वर्ष पहले किसी वैज्ञानिक ने प्रयोग करके जो फल निकाला था, हजार वर्ष बाद भी आज का वैज्ञानिक वैसे ही प्रयोग से वही फल प्राप्त करेगा। अत: यह स्पष्ट है कि त्रिकालाबाधित सत्य ही विज्ञान है। देश या काल के कारण इसमें कोई अन्तर नहीं आ सकता। यही बात धर्म के लिए भी हम कह सकते हैं। अत: मानना पड़ेगा धर्म स्वयं विज्ञान है किसी वस्तु को जानने का जो माध्यम है, वह है विज्ञान, और उस माध्यम के द्वारा जो कुछ प्राप्त होता है, वह है धर्म। विज्ञान वस्तु को जानने की प्रक्रिया है और धर्म आत्मा को पाने की प्रक्रिया है, साधन है। मनुष्य में सत्य की जिज्ञासा और उसकी खोज का प्रयत्न चिरकाल से रहा है। उसका स्थूल रूप हमारे सामने है। मनुष्य केवल स्थूल से संतुष्ट नहीं होता। वह निरन्तर स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रस्थान करता है। धर्म की खोज सूक्ष्म तत्त्व की खोज है। आत्मा, परमात्मा, परमाणु, कर्म-ये सभी सूक्ष्म तत्त्व हैं। साधारण जीवन-यात्रा से इनका सीधा सम्बन्ध नहीं है। इस खोज का माध्यम रहा है-अन्तर्दृष्टि, अतीन्द्रिय चेतना और गंभीर एवं एकाग्र चिन्तन। विज्ञान ने भी सूक्ष्म सत्यों को खोजा है। उसकी खोज का माध्यम है-सूक्ष्मदर्शी उपकरण। वैज्ञानिक जगत् में ये उपकरण प्रचुर मात्रा में विकसित हुए हैं। इनके द्वारा एक सामान्य मनुष्य भी सूक्ष्म तत्त्वों को जान सकता है। किन्तु एक वैज्ञानिक के लिए ये उपकरण ही पर्याप्त नहीं हैं। उसके लिए अन्तर्दृष्टि, चिन्तन की एकाग्रता और निर्विचारता उतने ही आवश्यक हैं जितने एक धर्म की खोज करने वाले के लिए। धर्म भी सत्य की खोज है और विज्ञान भी सत्य की खोज है। जहां सत्य की खोज का प्रश्न है, दोनों एक बिंदु पर आ जाते हैं। पर उद्देश्य की दृष्टि से दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy