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________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३३५ उक्त परिभाषा से दो महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होते हैं, जो आधुनिक विज्ञान-सम्मत हैं : एक, पुद्गल (एवं अन्य द्रव्यों) की नित्यता (धौव्य) का सिद्धान्त विज्ञान का पदार्थ की अनाश्यकता का नियम (लॉ ऑफ इनडिस्ट्रक्टिबिलिटी ऑफ मैटर) है। इस नियम को प्रसिद्ध वैज्ञानिक लैव्हाइजियर ने १८ वीं शती में इन शब्दों में प्रस्तुत किया था : 'कुछ भी निर्मेय नहीं है और प्रत्येक क्रिया के अन्त में पदार्थ की उतनी ही मात्रा रहती है, जितनी उस क्रिया के आरंभ में रहती है। पदार्थों का केवल रूपान्तर (मॉडीफिकेशन) हो जाता है।' आधुनिक विज्ञान के अनुसार पदार्थ (मैटर) और ऊर्जा (एनर्जी) एक ही द्रव्य के दो रूप हैं; फलत: आजकल पदार्थ की अनाश्यकता के नियम के बदले पदार्थ और ऊर्जा के स्थिरण (कन्जर्वेशन ऑफ मैटर एण्ड एनर्जी) का नियम लागू होता है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि पुद्गल (पदार्थ एवं ऊर्जा) तथा अन्य द्रव्यों को न तो शून्य में विलुप्त किया जा सकता है और न शून्य से बनाया जा सकता है। आधुनिक विज्ञान की भी विश्व (यूनिवर्स) के संबंध में यह धारणा है। . पदार्थ एवं ऊर्जा (मैटर एण्ड एनर्जी) आइन्स्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत-के-पूर्व विज्ञान पदार्थ (मैटर) और (एनर्जी) को दो विभिन्न द्रव्य मानता था। साथ ही यह धारणा थी कि न तो पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है और न ऊर्जा को पदार्थ में । सापेक्षता के विशिष्ट सिद्धान्त (स्पेशल थिओरी ऑफ रिलेटिविटी) के E=mc2/ ऊर्जा = ऊर्जा (पदार्थ की मात्रा)x (प्रकाश की गति) सूत्र के अनुसार पदार्थ को ऊर्जा एवं ऊर्जा को पदार्थ में रूपान्तरित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में पदार्थ और ऊर्जा एक ही द्रव्य के दो रूप हैं। एक किलोग्राम पदार्थ को पूर्णत: रूपान्तरित करके ९ x १०१६ जूल (एक माप-इकाई) ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इतनी ऊर्जा से एक छोटे शहर का बिजलीघर कई महीनों तक चलाया जा सकता है। इस प्रकार के पदार्थ और ऊर्जा के परस्पर रूपान्तरण प्रकृति में और प्रयोगशाला में, अणु-भट्टियों में और अणु-शस्त्रों में होते रहते हैं। विशिष्ट महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सापेक्षतावाद के सिद्धांत प्रवर्तन के सदियों पूर्व से ही जैनदर्शन पदार्थ और ऊर्जा को पुद्गल की पर्याय मानता है। सारे पदार्थ मॉलीक्यूलों से बनते हैं, प्रत्येक मॉलीक्यूल परमाणुओं (एटम्स) के संयोग से बनता है, प्रत्येक परमाणु में एक केन्द्रकण (न्यूक्लिअस) और कई इलेक्ट्रॉन होते हैं। प्रत्येक केन्द्रकण में प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन होते हैं। धनात्मक (पॉजीटिव्ह) और ऋणात्मक (निगेटिव्ह) विद्युतें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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