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________________ २५० जैन दर्शन और विज्ञान जाता है, जो घटना के होने और द्रष्टा के देखने के बीच गुजरता है और इस काल का दैर्ध्य स्पष्टतया द्रष्टा और घटना स्थल के बीच की दूरी पर आधारित है। यहां पर यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अ और ब के बीच की दूरी कितनी भी छोटी क्यों न हो, प्रकाश का वेग (जो कि उत्कृष्टतम वेग है) परिमित होने से उस दूरी को तय करने में सुनिश्चित किन्तु परिमित समय ही लगेगा। एक व्यावहारिक उदाहरण से उक्त मन्तव्य का महत्त्व समझा जा सकता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में ब को पृथ्वी से ५० प्रकाश-वर्ष दूर का तारा मान लिया जाए और अ को पृथ्वी पर स्थित, दूर-वीक्ष्णयन्त्र द्वारा निरीक्षण करता हुआ द्रष्टा माना जाए। मान लो कि ब पर कोई विस्फोट होता हुआ द्रष्टा दिखाई दिया। साधारण भाषा में हम कहेंगे कि मनुष्य की देखने की घटना और तारा पर विस्फोट की घटना एक ही क्षण में होती है। अर्थात् ये दोनों घटनाएं 'युगपत्' (simultaneous) हैं। किन्तु वस्तुत: क्या ये घटनाएं युगपत् हैं? नहीं। क्योंकि तारा पृथ्वी से ५० प्रकाश-वर्ष दूर है अर्थात् प्रकाश को तारा और पृथ्वी की बीच की दूरी तय करने में ५० वर्ष लगते हैं। तात्पर्य यह हआ कि जो विस्फोट 'अब' देखा गया, वह वस्तुतः ५० वर्ष पहले हो चुका था। इस प्रकार 'युगपत्' शब्द निरपेक्ष नहीं रह पाया है, किंतु दो घटनाओं के बीच की दूरी पर आधरित हो जाता है। दूसरे शब्दों में आकाश और काल एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और विश्व में होने वाली घटनाओं पर दोनों का सम्मिलित प्रभाव होता है। ___ आइन्स्टीन के विशिष्ट आपेक्षिकता के सिद्धांत से जो अनेक नए तथ्य वैज्ञानिकों के सामने आए, उनमें से दो-तीन महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों का उल्लेख संक्षेप में यहां पर किया जा रहा है। यद्यपि ये आकाश और काल सम्बन्धी प्रस्तुत चर्चा से सीधा सम्बन्ध नहीं रखते हैं, फिर भी इनका महत्त्व भौतिक विज्ञान में अत्यधिक फिट्जजेराल्ड और लोरेन्टज द्वारा दिये गये सिद्धातों के अनुसार गति का वस्तु की लम्बाई पर प्रभाव पड़ता है। आइन्स्टीन के आपेक्षिकता के सिद्धांत में यह बताया गया कि गतिमान् निकाय (system) में गति की दिशा में रही हुई आकाशीय विमिति में संकोच होता है, साथ ही साथ समय की विमिति में भी संकोच होता है। दूसरे शब्दों में इस तथ्य को इस प्रकार कहा जा सकता है : गतिमान निकाय में रही हुई नापने वाली छड़ की लम्बाई में हानि होती है और निकाय में स्थित घड़ी धीमे १. प्रकाश की गति एक सैकिण्ड में लगभग १,८६,००० माईल है; इस गति से चलने वाली प्रकाश-किरण जितना अन्तर एक वर्ष में काटती है, उसको १ प्रकाश-वर्ष कहते हैं। प्रकाश-वर्ष- ५.८८ x १०१२ माईल लगभग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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