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________________ १६७ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली शाकाहारी भोजन इस बीमारी से बचाता है। ५. आंतों का सड़ना- अण्डा, मांस आदि खाने से पेचिस, मंदाग्नि आदि बीमारियां घर कर जाती हैं, आमाशय कमजोर होता है व आतें सड़ जाती हैं। ६. विषावरोधी-शक्ति का क्षय-मांस, अण्डा, खाने से शरीर की विषावरोधी शक्ति नष्ट होती हैं और शरीर साधारण-सी बीमारी का भी मुकाबला नहीं कर पाता, बुद्धि व स्मरण शक्ति कमजोर पड़ती है। विकास मंद हो जाता है। कुछ अमरीकी व इंग्लैंड के डाक्टरों ने तो अण्डे को मनुष्य के लिए जहर कहा है। ७. त्वचा के रोग, एग्जीमा, मुंहासे आदि- त्वचा की रक्षा के लिए विटामिन A का सर्वाधिक महत्त्व है जो गाजर, टमाटर, हरी सब्जियों आदि में ही बहुतायत में होता है। यह शाकाहारी पदार्थ जहां त्वचा की रक्षा करते हैं वहीं मांस, अण्डे, शराब इत्यादि त्वचा-रोगों को बढ़ावा देते हैं। त्वचा में जलन महसूस होने वाले रोग के अधिकांश रोगी मांसाहारी ही पाए गए। ८. अन्य रोगों जैसे माइग्रेन, इन्फैक्शन से होने वाले रोग, स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोग आदि भी मांसाहारियों में ही अधिक पाये जाते हैं। सारांश में जहां शाकाहारी भोजन प्राय: प्रत्येक रोग को रोकता है वहीं मांसाहारी भोजन प्रत्येक रोग को बढ़ावा देता है। शाकाहारी भोजन आयु बढ़ाता है तो मांसाहारी भोजन आयु घटाता है। महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य १. ग्वालियर के दो शोधकर्ताओं डा. जसराज सिंह और श्री. सी. के. डवास ने ग्वालियर जेल के ४०० बन्दियों पर शोध कर यह बताया कि २५० मांसाहारी बन्दियों में से ८५ प्रतिशत चिड़चिड़े स्वभाव के व झगड़ालू टाइप के निकले जबकि बाकी १५० शाकाहारी बन्दियों में से १० प्रतिशत शांत स्वभाव के और खुशमिजाज थे। २. अमरीकी विशेषज्ञ डा. विलियम, सी. राबर्टस का कहना है कि अमेरिका में मांसाहारी लोगों में दिल के मरीज ज्यादा हैं। उनके मुकाबले शाकाहारी लोगों में दिल के मरीज कम होते है। ३. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार एक कीड़ा जिसे अंग्रेजी में ब्रेन बग (Brain Bug) कहते है। ऐसा होता है जिसके काटने से पशु पागल हो जाता है किन्तु पागलपन का यह रोग पूरी तरह विकसित होने में १० वर्ष तक का समय लग जाता है। इस बीच यदि कोई इस कीड़े द्वारा काटे हुए पशु का मांस खा लेता है तो पशु में पलने १. अहिंसा संदेश, जून ८९, रांची Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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