SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधि की खोज : समस्या का जीवन ८३ आती हैं, यह संवर है, यह समाधि है। दरवाजा खुला है तो आश्रव। दरवाजा बन्द है तो संवर। अधिक अंतर नहीं है। खुलावट और बन्द का ही अन्तर है। दरवाजा खुला है तो सब कुछ आ सकता है, बन्द होने पर कुछ भी नहीं आ सकता। यह समाधि है। ___आश्रव समस्या है, संवर समाधि है। आज के लोगों ने आश्रव और संवर को भी टेक्निकल बना डाला, परिभाषा में उलझा दिया। इसलिए आश्रव और संवर की धारणा भी बदल गई। आश्रव के छह प्रकार हैं। हमारी स्पर्शन इन्द्रिय एक आश्रव है जिससे स्पर्श की अनुभूति होती है। हमारी जीभ एक आश्रव है, जिससे रसानुभूति होती है। हमारी आंख एक आश्रव है, जिसमें से रूप आता है। हमारा कान एक आश्रव है, जिससे शब्द आता है और हमारी घ्राण इन्द्रिय एक आश्रव है, जिससे गंध की अनुभूति होती है। हमारा मन एक आश्रव है, जिससे विचार आता है। छह दरवाजे और छह आगन्तुक । शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श और भाव-ये आगन्तुक हैं। इनके आने के छह द्वार हैं। शब्द का प्रभाव जब शब्द भीतर जाता है तब समस्या पैदा करता है। शब्द व्यर्थ की कल्पनाएं और उलझनें पैदा करता है और आदमी को पीड़ा की कारा में बन्द कर देता एक आदमी अपनी धुन में चला जा रहा था। पीछे से दूसरा आदमी आया और बोला-'अरे! यह क्या? तुम यहां घूम रहे हो और तुम्हारी पत्नी अपने प्रेमी के साथ उस बगीचे में बैठी है।' यह सुनते ही वह क्रोध से भर गया। उसके होंठ फड़कने लगे। आंखें लाल हो गईं। उसने कहा-'अभी दोनों को गोली से उड़ा देता हूं।' वह बन्दूक लेकर बगीचे की ओर चला। इतने में ही उसे याद आया-अरे, मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है। कहां है पत्नी और कहां है उसका प्रेमी! उसका गुस्सा शांत हो गया। शब्द का आक्रमण बड़ा भयंकर होता है। उस समय वस्तुस्थिति का भान नहीं होता। आदमी कल्पना के जाल में उलझ जाता है। शब्दों के द्वारा जीवन में कितनी घटनाएं घटित होती हैं। यथार्थ में समस्या कुछ भी नहीं होती, किन्तु आदमी शब्द को पकड़कर इतने संघर्ष में उतर जाता है कि जिसगी कल्पना भी नहीं की जा सकती। राजनेता के पास आकर एक व्यक्ति ने कहा-'अमुक व्यक्ति 'ख' आपको बुरा-भला कह रहा था। आपको वह भ्रष्ट, धूर्त और धोखेबाज बता रहा था।' राजनेता ने कहा- 'यदि मैं इस बार मंत्री बन जाऊंगा तो उस नालायक को नरक में भेज दूंगा। वह मुझे समझता क्या है?' इतने में दूसरा आदमी आकर बोला-'अमुक व्यक्ति 'क' आपकी बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy