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________________ ७६ अप्पाणं सरणं गच्छामि चाहता है। यह कैसे हो कि भोजन के विषय में वह सचाई को न झुठलाए। यह संभव नहीं है। झुठलाना जिसका स्वभाव ही बन गया, वह फिर हर जगह झुठलाने का प्रयत्न क्यों नहीं करेगा? चित्त-स्वास्थ्य का माध्यम शरीर एक ऐसा यंत्र है जिसमें अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए पूरी व्यवस्था है, किन्तु चित्त को स्वस्थ रखने के लिए उसमें कोई व्यवस्था नहीं है। उसे व्यवस्था देना आवश्यक है। वह व्यवस्था है धर्म। किन्तु कठिनाई एक है कि संपन्नता के शिखर पर चढ़कर जो खोज की जाती है, गरीबी में उस खोज का मूल्य समाप्त हो जाता है। आदमी भोग के अंतिम बिन्दु पर पहुंच गया। उसने पदार्थ के शिखर पर पहुंचकर पाया कि अब आगे पदार्थ से कुछ भी उपलब्ध नहीं हो सकता, पदार्थ की शक्ति समाप्त है, पदार्थ सुख नहीं दे सकता, प्रत्युत भ्रांति दे रहा है, व्यथा दे रहा है, ऐसी स्थिति में उसने पाया कि एक ऐसा भी तत्त्व है जो पदार्थ-निरपेक्ष है, जहां पदार्थ की सुख देने की शक्ति समाप्त हो जाती है वहां भी वह सुख दे सकता है और वह तत्त्व है धर्म। किन्तु संपन्नता के शिखर पर पहुंचकर की गई खोज विपन्नता की स्थिति में हमारे लिए स्वयं असत्य और भ्रांति बन जाती है। आज यही हुआ है। हिन्दुस्तान में जो धर्म या सत्य की खोज हुई वह उन लोगों ने की जो संपन्नता के शिखर का, भोग के अन्तिम बिन्दु का स्पर्श कर चुके थे। वे राजे-महाराजे और सम्राट भोग के द्वारा शान्ति नहीं पा सके, तब दूसरे पथ पर चल पड़े। सत्य की खोज में लग गए। उस खोज में उन्हें मिला धर्म। अब आज इस गरीब देश में हम धर्म की बात करते हैं तो लोग कहते हैं-रोटी चाहिए। धर्म हमारा क्या भला करेगा? मैं समझता हूं कि आज लोगों को धर्म की कम जरूरत है, रोटी की अधिक जरूरत है। गरीब देश में धर्म की कम जरूरत होती है। धर्म की जरूरत तब होती है जब मानसिक व्यथाएं अधिक बढ़ती हैं, विभिन्न प्रकार के तनाव उत्पन्न होते हैं। ध्यान और धर्म की जरूरत शायद उन लोगों को होती है जो आदमी संपदा से ऊबकर मानसिक तनाव से ग्रस्त हो गए हैं। जिस बेचारे गरीब को दो जून रोटी भी नहीं मिलती तो वह क्या ध्यान करेगा? उसका सारा प्रयत्न रोटी जुटाने में ही खत्म हो जाएगा। तनाव उन लोगों को ज्यादा होता है जो पदार्थ से चारों ओर घिरे रहते हैं। जब यह घेराव सघन होता है तब वे उससे बाहर आना चाहते हैं। उस चाह से वे नया रास्ता खोजते हैं। एक व्यक्ति ने मधुमक्खियां पाल रखी थीं। दूसरे व्यक्ति ने पूछा-'इनसे क्या लाभ हुआ?' उसने कहा-'सबसे बड़ा यह लाभ हुआ कि अब मेहमान आने कम हो गए। मधुक्खियां पालने की उसके लिए जरूरत है जो सब कुछ बटोरकर रखना चाहता है। जो यह सोचता है-मैं एक व्यवसाय में संलग्न हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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