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________________ प्रेक्षा एक प्रयोग है ज्ञानी होने का ६६ अपने आपको किसी से न्यून दिखाना नहीं चाहता। अपनी दुर्बलताओं को स्वीकार करना नहीं चाहता। वह मरकर यदि देवयोनि में भी जाता है तो अधम जाति का देव किल्विषिक होता है। सामान्यतः आदमी अपनी कमजोरी को प्रकट करना नहीं चाहता। अपनी दुर्बलताओं को वही व्यक्ति प्रकट कर सकता है जो ज्ञानी होता है, जो अपने ज्ञान की सीमा को जानता है, अपने चरित्र की सीमा को जानता है। व्यक्ति साधना के पथ पर चलता है, बढ़ता है। कोई साधु बन जाता है और कोई गृहस्थ ही बना रहता है। साधु बनते ही यदि कोई सोच ले कि वह सिद्ध बन गया, अब उसमें कोई त्रुटि नहीं रही, कोई दोष नहीं रहा तो यह भूल होगी। साधन प्रारंभ करते ही कोई सिद्ध नहीं बन जाता। सिद्ध बनने में बहुत तपना पड़ता है, खपना पड़ता है। प्रेम : वृत्तियों के प्रति जागना प्रेक्षा-ध्यान साधना का मार्ग है। कोई व्यक्ति प्रेक्षा-ध्यान की साधना प्रारंभ करते ही सोचता है कि मैं सिद्ध बन गया। अब यदि कोई यह जान लेगा कि मेरे में यह दुर्बलता है, यह कमजोरी है तो फिर मैं साधक ही कैसा! इस प्रकार सोचने वाले साधक का अहं उभर आता है और वह फिर दूसरों से मार्गदर्शन लेना भूल जाता है। उसमें जब वासना जागती है, क्रोध की उर्मियां उभरती हैं, हिंसा की भावना जागृत होती है, असत्य और चोरी की भावना जागती है तब वह इन सभी दुर्बलताओं को छिपाकर अपने आपको एक विशुद्ध ध्यानी के रूप में प्रस्तुत करना पसन्द करता है और सिद्ध करता है कि उसमें ये कमजोरियां नहीं हैं। साधना का यह सबसे बड़ा विघ्न है। साधक को चाहिए कि वह अपना गुरु चुने और अपनी समस्त कमजोरियां गुरु के समक्ष प्रकट करता रहे। समय-समय पर उभरने वाली वृत्तियों के उपशमन के लिए वह गुरु से मार्गदर्शन ले और अपना परिमार्जन करे। शिष्य की कमजोरियों को जानकर गुरु को कोई कष्ट नहीं होगा। गुरु जानते हैं कि साधना-काल में ये वृत्तियां जागती हैं। हजारों-लाखों वर्षों के अर्जित संस्कार जागते हैं, यह आश्चर्य नहीं है। किन्तु जो उन उभरने वाली वृत्तियों की प्रेक्षा करता है, उन्हें देखता है, वह धीरे-धीरे उनसे छुटकारा पा लेता है। साधना का अर्थ सारी वृत्तियों और संस्कारों से एक साथ छूट जाना नहीं है, किन्तु उन संस्कारों और वृत्तियों के प्रति जाग जाना है, अपने भीतर में संचित सड़ांध को साफ करने के प्रति जाग जाना है। इसका नाम है ज्ञान, ध्यान या साधना। जब यह जागृत होती है तब जीवन में साधना उतरती है, व्यक्ति ज्ञानी बनने की ओर अग्रसर होता है। इस जागृति से ही साधना में निखार आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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