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________________ नयी आदतें : नयी आस्थाएं ३०३ इन अवरोधों ने संकरा बना दिया, अस्वच्छ बना दिया। मूर्छा इतनी सघन हो गई कि धमनियां कड़ी बन गईं और उनमें रक्त का संचार सुगम नहीं रहा। इसीलिए जवानी समाप्त हो रही है, बुढ़ापा आ रहा है और आदमी दुःख पा रहा है। लक्ष्य और आस्था बहुत बड़ा प्रश्न है कि ध्यान का प्रयोजन क्या है? ध्यान-साधक का लक्ष्य क्या है? वह क्या चाहता है? जब तक कोई लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता तब तक जीवन का संचालन-सूत्र भी स्पष्ट नहीं होता। आदमी की एक लक्ष्य के प्रति आस्था होती है। जैसी आस्था और श्रद्धा होती है वैसा ही उसका संचालन होता है। एक आदमी बैठा है। भूख लगती है। वह खड़ा होता है और रसोईघर की ओर जाता है। हाथ की मांसपेशियां सक्रिय होती हैं। वह हाथ से भोजन उठाता है। मुंह में लार टपकने लग जाती है, रस का स्राव प्रारम्भ हो जाता है। पित्त का स्राव होने लगता है। सारा शरीर-तंत्र संचालित हो जाता है। पाचन-प्रणाली की मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। सब अपना-अपना काम करते हैं। भोजन के लिए जितने रसस्राव अपेक्षित होते हैं, वे सारे होने लग जाते हैं। इसका कारण क्या है? इसका कारण है कि भीतर एक आस्था जमी हुई है कि जब भूख का अनुभव हो तो भोजन करना चाहिए। आस्था से प्रेरित होकर मनुष्य जब भोजन के लिए पैर बढ़ाता है तब सारा तंत्र सक्रिय हो जाता है। हमारे जीवन की समस्त क्रियाएं संचालित होती हैं आस्थाओं के द्वारा। ये सारे कार्यतंत्र हैं। मस्तिष्क भी एक कार्यतंत्र है। वह सारे कार्य को संचालित करता है, नियंत्रित करता है। उसकी प्रेरणा है-गहन अन्तराल में छिपी हुई हमारी आस्था और श्रद्धा। हमारी जैसी आस्था होगी, उसी ओर हमारी सारी शक्ति प्रवाहित होने लग जाएगी। यदि आदमी की आस्था लड़ाई में है तो उसकी सारी शक्ति लड़ाई में लग जाएगी। यदि आदमी की आस्था क्षमा में है तो उसकी सारी शक्ति क्षमा में लग जाएगी। आस्थाओं से आदत का निर्माण होता है। आदत आस्था को नहीं बनाती, किन्तु आस्था आदत को बनाती है। पहले आस्था फिर आदत। जैसी आस्था वैसी आदत। आज आस्थाओं में परिमार्जन अपेक्षित है। ध्यान है आस्थाओं का परिमार्जन ध्यान का लक्ष्य है आस्थाओं का परिमार्जन करना। हम आस्थाओं का परिष्कार करना चाहते हैं। हमारी आस्था संबंध की आस्था बनी हुई है। यह संबंध स्थापित करने की आस्था है। हम अध्यात्म जगत् से अपना संबंध स्थापित करना चाहते हैं। उस संबंध के द्वारा सुख पाना चाहते हैं। सम्पर्क-सूत्र की आस्था, संबंध और सुख-यह एक प्रक्रिया है। पदार्थ का संयोग होता है, तब सुख होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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