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________________ २६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि तेज अग्नि के द्वारा तपाया जाता है, उसे लोह से फौलाद बना दिया जाता है, उसके सारे विजातीय तत्त्वों-संस्कारों को निकाल दिया जाता है तो वह बहुत मजबूत बन जाता है। उस स्थिति में केवल चित्त रह जाता है, विशुद्ध चित्तमात्र। वह प्रत्येक तूफान का सामना कर सकता है और भयंकर से भयंकर बवंडर में अविचल खड़ा रह सकता है। ध्यान की निष्पत्ति : समस्या की समाप्ति या मनोबल की वृद्धि? ध्यान की प्रक्रिया समस्याओं को समाप्त करने की प्रक्रिया नहीं है। ध्यान-साधक यह भ्रान्ति न रखें कि ध्यान से सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। ऐसा कभी नहीं होगा। ध्यान के द्वारा समस्याएं या परिस्थितियां नहीं मिट सकतीं। जगत् में विभिन्न प्रकार के लोग हैं। उनकी ग्रन्थियों के आन्तरिक स्राव भी भिन्न-भिन्न हैं। उनकी विद्युत्-धाराओं के प्रवाह भी भिन्न हैं। क्या-क्या मिटा पायेंगे? ध्यान के द्वारा रोटी की और आजीविका की समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता। कितना ही ध्यान करें, उससे रोटी प्राप्त नहीं हो सकती। रोटी के लिए खेती आवश्यक है। रोटी के लिए श्रम और व्यवसाय अपेक्षित है। ध्यान के द्वारा रोटी की समस्या नहीं सुलझ सकती। ध्यान के द्वारा जो प्राप्तव्य है वह ध्यान से मिल सकता है। जो ध्यान के द्वारा नहीं हो सकता, उसको ध्यान के द्वारा करने के लिए प्रयत्न करना, एक भ्रान्ति है। यदि इस भ्रान्ति में जाएंगे तो न ध्यान को ही समझ पाएंगे और न ध्यान के द्वारा जो प्राप्तव्य है, वही उपलब्ध होगा। ध्यान के द्वारा मिलता है-मनोबल, चित्तशक्ति, शुद्ध चेतना का पराक्रम। ध्यान के द्वारा एक ऐसी शक्ति मिलती है जो व्यक्ति को प्रत्येक समस्या को झेलने में सक्षम बनाती है। व्यक्ति में ऐसी शक्ति जगा देती है कि व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति का हंसते-हंसते सामना कर सकता है, समस्या को सुलझा सकता है और अच्छी-बुरी घटना घटित होने पर भी संतुलन नहीं खोता। संतुलन को बनाए रखना बहुत बड़ी बात है। बड़े-बड़े लोग भी विषम परिस्थिति में संतुलन नहीं रख पाते। बड़े आदमी ही ज्यादा असंतुलित होते हैं। छोटा आदमी सहना जानता है। वह छोटी-बड़ी अप्रिय घटना सह लेता है। संतुलन नहीं खोता। बड़ा आदमी सह नहीं सकता। अप्रिय घटना होते ही उसका अहं जाग जाता है। धन और सत्ता का नशा उसको आक्रान्त कर देता है। वह तब दूसरों को तुच्छ मानकर अप्रिय कर बैठता है। उसका संतुलन बिगड़ जाता है और तब जो होना होता है वही होता है। बड़े आदमी को संतुलन खोने के अनेक अवसर मिलते हैं। छोटे आदमी को वे अवसर सुलभ नहीं हैं। यही कारण है कि छोटा आदमी कम अवसरों में संतुलन खोता है, और बड़ा आदमी कम अवसरों में संतुलन रख पाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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