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________________ चित्त-शुद्धि और श्वास-प्रेक्षा २२६ है। धनी लोग आ रहे हैं और अपने पूर्व- निर्धारित स्थान पर बैठते जा रहे हैं। एक सेवक उनको यथास्थान पर बिठा रहा है। राजा का उनकी ओर कोई ध्यान ही नहीं है। इतने में कलाकार पहुंचा। उसको देखते ही राजा खड़ा हुआ। उसको नमस्कार कर अपने पास बिठा लिया। सारे लोग आश्चर्यचकित रह गए। सभा विसर्जित हुई। सब अपने-अपने घर जाने लगे। कलाकार ज्योंही सभा-भवन से बाहर निकला, उन धनिकों ने उसे घेर लिया। उन्होंने पूछा-तुम हम सबको प्रणाम करते हो और स्वयं राजा तुम्हें प्रणाम करता है। आश्चर्य की बात है! कलाकार ने विनम्र भाव से कहा-जो कला का मूल्य नहीं जानते उन्हें कलाकार प्रणाम करता है और जो कला का मूल्य जानते हैं, वे कलाकार को प्रणाम करते हैं। यही घटना हमारे जीवन में घटित हो रही है। हम श्वास का मूल्य नहीं जानते, इसलिए बेचारा श्वास हमारे पीछे-पीछे दौड़ रहा है। जिस दिन हम श्वास का मूल्य जान जायेंगे, तब हम श्वास के पीछे-पीछे दौड़ेंगे। श्वास का मूल्य समाधि की साधना करने वाला साधक सबसे पहले श्वास का मूल्यांकन करता है। जो श्वास का मूल्य नहीं समझता, वह समाधि की साधना नहीं कर सकता। जब श्वास शांत होता है तब वाणी अपने आप शांत हो जाती है। जब श्वास शांत होता है तब शरीर स्थिर हो जाता है। जब श्वास शांत होता है तब चित्त स्वयं स्थिर हो जाता है और मन अमन की स्थिति में चला जाता है। जब श्वास शांत होता है तब स्मृतियां, कल्पनाएं और विचार शांत हो जाते हैं। ये सब श्वास के साथ चलते हैं। सब श्वास के अनुगामी हैं। श्वास बहुत ही मूल्यवान् है। जिज्ञासा होती है कि श्वास का मूल्य क्यों? हम प्राणी हैं। प्राणी इसीलिए हैं कि हमारे भीतर प्राण का प्रवाह है। हमारे में दस प्रकार की प्राण-शक्तियां हैं-पांच इन्द्रियों के पांच प्राण, मन प्राण, वचन प्राण, शरीर प्राण, श्वासोच्छ्वास प्राण और आयुष्य प्राण। इनके आधार पर प्राणी जीता है। जब यह प्राणों की दीपशिखा बुझ जाती है तब प्राणी मृत्यु की गोद में चला जाता है। जब तक प्राण, तब तक जीवन । प्राण समाप्त, जीवन समाप्त। सारा जीवन प्राणाधारित है। शरीर चल नहीं सकता, एक अंगुली भी नहीं हिल सकती यदि शरीर-प्राण न हो। जब शरीर-प्राण की ऊर्जा मिलती है तब शरीर सक्रिय होता है। जब यह प्राण की शक्ति सिमट जाती है, तब आदमी लकवे का शिकार होता है। इन्द्रियों की चंचलता, मन, वाणी और श्वासोच्छ्वास की चंचलता-सब प्राणधारा से निष्पन्न होती हैं। प्राण ही चंचलता पैदा करता है, अन्यथा सब निष्प्राण हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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