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________________ चित्त-समाधि के सूत्र (२) १६५ अपने होशियार कुएं को हमारे पास भेज दे तो संभव है कि हमारा देहाती कुआं भी चलना सीख जाए। आज तक राजा ने कभी उत्तर नहीं दिया और न फिर यह मांग की कि तुम्हारा कुआं हमारे यहां भेज दिया जाये । यह कुआं स्वयं को ही खोदना है, समाधि का अभ्यास स्वयं को करना है । समाधि का प्रयत्न स्वयं को करना है । दूसरा पहलू था - अनायास समाधि का । जिस समाधि के लिए अभ्यास की जरूरत नहीं होती, जिस समाधि के लिए किसी क्रम से गुजरने की जरूरत नहीं होती, कोई आकस्मिक घटना घटती है, एकाएक समाधि की चेतना जाग जाती है और जीवन में समाधि का अवतरण हो जाता है। उसके दस सूत्र हैं । भगवान महावीर ने चित्त-समाधि के दस सूत्रों का प्रतिपादन किया। उनमें पहला सूत्र है -- धर्मचिन्ता । जीवन में कभी-कभी कोई क्षण आता है, जब जो सत्य पहले कभी सामने नहीं आया, अचानक वह सत्य सामने आ जाता है । पहले जो चिन्ता और चिन्तन सामने नहीं आया, अकस्मात् वह चिन्तन सामने आता है, अवतरित होता है और जीवन में समाधि का प्रस्थान शुरू हो जाता है । दुनिया में जितने बड़े सत्य उतरे हैं वे अभ्यास के द्वारा भी उतरे हैं, प्रयत्न करते-करते भी उतरे हैं किन्तु उनमें से अधिक सहज उतरे हैं। उनका सहज अवतरण हुआ है | चाहे अध्यात्म की खोजों में आप देखें, चाहे वैज्ञानिक खोजों में । सत्य की खोज की किसी भी दिशा में आप जायें और देखें । बड़े सत्यों का अवतरण ऐसे हुआ कि जैसे कोई झटका लगा और सत्य सामने आ गया । समाधि घटित हो गई थावच्चापुत्र बहुत बड़े धनी का पुत्र था। जब वह छोटा था, तब पिता चल बसा। मां ने उसका पालन-पोषण किया। एक दिन बैठा था अपने घर में। पड़ोसी के घर पर कोई घटना घटी। बच्चा जन्मा । बहुत हर्ष मनाया गया । बाजे बजाये गए, शंखनाद हुआ, गीत गाये गये, बड़े मधुर गीत । कुछ समय बीता । दो, चार, पांच घंटे बीते । ऐसा कोई संयोग मिला, जो जन्मा था वह मर गया । सब रोने लगे । हाहाकार हुआ। रोने के स्वर कानों को बेधने लगे । थावच्चापुत्र आया मां के पास । बोला- “मां! यह क्या? मैंने पांच घंटे पहले जो गाना सुना वह बड़ा प्रिय था, लुभाने वाला और कानों को सुख देने वाला था और अब ये शब्द कानों को अप्रिय लग रहे हैं, कानों में चुभ रहे हैं । दो प्रकार के गीत क्यों गाये जाते हैं?” मां ने कहा- "बेटा ! तू नहीं जानता । बच्चा जन्मा था, तब हर्ष मनाया गया, उल्लास मनाया गया, गीत गाये गये और जो जन्मा था वह मर गया इसलिए सब रो रहे हैं । गीत नहीं गाये जा रहे हैं, यह रोना हो रहा है ।” “अच्छा तो मां ! मुझे भी मरना पड़ेगा ?” “वत्स ! जिसने जन्म लिया है उसे मरना पड़ेगा। दो दिन पहले या दो दिन पीछे सब को मरना पड़ेगा ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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