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________________ १३६ अप्पाणं सरणं गच्छामि आधार पर आज यह हाथी भी मनुष्य की कैद में है। मनुष्य हाथी पर सवारी भी करता है और हाथी से भार भी ढोता है। बाघ, चीते, शेर, जितने भयंकर जानवर भी मनुष्य के बन्दी बने हुए हैं। भैसों और बैलों की बात ही छोड़ दें। नाड़ी-शक्ति के आधार पर उसकी बुद्धिजा-शक्ति और कर्मजा-शक्ति दोनों इतनी हैं कि वह जो चाहे वैसा कर सकता है। वह किसी भी प्राणी की नाक में नकेल डाल सकता है। कोई भी उसकी शक्ति से परे नहीं है। हमारे नाड़ी-संस्थान में ये दोनों-ज्ञान और कार्य की क्षमताएं बहुत अधिक हैं जितनी क्षमता है उसका बीस प्रतिशत उपयोग मात्र हम कर पा रहे हैं, अस्सी प्रतिशत क्षमता अनुपयोग में ही पड़ी रहती है। केवल सत्ता में पड़ी रहती है, उसका परिणाम नहीं भी होता। सामान्य आदमी दस-पन्द्रह प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग करता है नाड़ी-संस्थान की शक्ति का और यदि बीस-पच्चीस प्रतिशत उपयोग कर लेता है तो वह बौद्धिक क्षेत्र में और कर्म के क्षेत्र में बड़ा आदमी बन जाता है। कल्पना करें-दस-पन्द्रह प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने वाला क्या सचमुच न्याय करता है अपने जीवन के प्रति? क्या न्याय करता है अपने नाड़ी-संस्थान के प्रति? जिसे इतनी क्षमता उपलब्ध हुई है, वह उपयोग ही नहीं कर पा रहा है। सचमुच जीवन व्यर्थ चला जाता है। धर्मगुरु कहते हैं-जीवन सफल नहीं बना। धर्म के बिना जीवन विफल चला गया। उसका रहस्य समझें। धर्म के बिना जीवन विफल कैसे चला गया। यानी जो क्षमता मिली उसका हमने पूरा उपयोग नहीं किया। जो शक्ति मिली, उसे पूरा काम में नहीं ले सके। शक्ति सोयी की सोयी रह गई, उसे जागने का मौका नहीं मिला। जब आदमी सोया का सोया रह जाता है तब क्षमता समाप्त हो जाती है। साधना का उद्देश्य साधना का उद्देश्य है-क्षमता को जगाना। साधना का एक ही उद्देश्य है-सुप्त शक्तियों का जागरण। जो अस्सी प्रतिशत ज्ञान की और कर्म की शक्तियां सोयी पड़ी रहती हैं, उन शक्तियों को जगाना, समाधि का प्रयोजन है। शक्तियां तब जागती हैं जब हम अपने प्रति जागरूक बनते हैं, अपना अनुभव करते हैं। अपने प्रति जागरूक बने बिना शक्तियों का जागरण नहीं होता। समाधि का अर्थ है-चैतन्य का अनुभव । जो व्यक्ति अपने चैतन्य का अनुभव करने लग जाता है उसकी सोयी हुई शक्तियां जागने लग जाती हैं। जितना-जितना चैतन्य का अनुभव होता है, उतना-उतना शक्ति का विकास होता है। धार्मिक लोगों का उद्देश्य है-आत्मदर्शन, आत्म-साक्षात्कार। बहुत तड़प होती है, न जाने कितने लोग आते हैं और पूछते हैं-आत्मा का साक्षात्कार कैसे होगा? आत्मा का दर्शन कैसे होगा? कुछ लोग पूछते हैं-परमात्मा का साक्षात्कार कैसे हो? परमात्मा का दर्शन कैसे हो? कोई अन्तर नहीं है। आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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