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________________ समाधि के मूल सूत्र १०५ हाथ टूट गया हो या पांव-वह दवा नहीं ले सकता, इलाज नहीं करा सकता। वह किसी भी प्रकार की चिकित्सा नहीं करा सकता। फूलबाई ने उस सोसायटी के सदस्य से पूछा-आप लोग बीमार तो होते ही होंगे। फिर आप अपनी बीमारी कैसे मिटाते हैं? उस सदस्य ने कहा-'गॉड इज लव'-परमात्मा इतना उदार और शक्तिशाली है कि वह करुणा की वर्षा करता है और हमारी सारी बीमारियां मिट जाती हैं। हम रोगी में एक ऐसी आस्था जगाते हैं, ईश्वर के प्रति इतनी सघन आस्था का निर्माण करते हैं कि उसकी बीमारियां समाप्त हो जाती हैं।' फेथ हीलिंग वर्तमान में एक चिकित्सा-पद्धति प्रचलित है। उसका नाम है-फेथ हीलिंग। इसका अर्थ है-आस्था के द्वारा रोग-चिकित्सा। आस्था के आधार पर होने वाले लाभों का विवरण हमारे ग्रंथों से भरा पड़ा है। प्रश्न है आस्था घनीभूत कैसे हो? हमारा अपने अन्तर के साथ संपर्क कैसे हो? जब तक अपने अस्तित्व के आन्तरिक स्रोतों के साथ संपर्क स्थापित नहीं होता, तब तक हमें बाहर के भरोसे जीना पड़ता है और बाहरी साधनों का सहारा लेना पड़ता है। जब हमारी दृष्टि बदलती है, वह बाहर से मुड़कर भीतर में जाती है तब आन्तरिक स्रोतों के साथ संपर्क स्थापित होता है और व्यक्ति पूरे अस्तित्व के साथ जीने लग जाता है। जब व्यक्ति में इस आस्था का निर्माण हो जाता है कि मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं तब वह दुःख के महासागर को तैरने में सफल हो जाता है और वह उसे पार कर जाता है। अनासक्त योग दुःख की घटनाएं घटती हैं, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। भूकंप आता है, तूफान आता है, समुद्री बवंडर आता है-इन्हें कोई नहीं रोक सकता। उल्कापात होता है, उसे कोई नहीं रोक सकता। बीमारियां और प्राकृतिक प्रकोप की घटनाएं घटित होती हैं, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। किन्तु मनुष्य एक काम कर सकता है। वह इन अवश्यंभावी प्रकोपों से होने वाले दुःखद संवेदनों से अपने आपको बचा सकता है। ये घटनाएं जो मन और मस्तिष्क को बोझिल बना देती हैं और जीते-जी मरने की स्थिति में ला देती हैं, इनसे बचा जा सकता है। घटना घटित होगी, परन्तु व्यक्ति इनके साथ नहीं जुड़ेगा। वह जुड़ेगा तो इतना ही कि घटना घटी है और उसका ज्ञान है। इससे अधिक घटना के साथ कोई संपर्क नहीं होगा। घटना चेतन मन तक पहुंचेगी। वह अवचेतन मन का स्पर्श भी नहीं कर पाएगी। चेतन मन पर घटना का प्रतिबिम्ब पड़ेगा, अवचेतन मन पर नहीं। वहां उसकी प्रतिक्रिया भी नहीं होगी। समाधि का चौथा सूत्र--'मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं' बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इससे दुःख-संवेदन समाप्त हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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