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________________ स्तुति : अर्थ और स्वरूप विभिन्न अवतारों सहित श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों के आलम्बन हैं । शादि ग्रन्थों में आलम्बन का अर्थ आश्रय, आधार, कारणादि है । प्रश्न है कि स्तुतियों का आलम्बन कौन हो सकता है । इसका सरल समाधान है जिसके प्रति स्तुति समर्पित की गई है, वही उसका आलम्बन है । पुनः जिज्ञासा होती है – कौन है वह, जिसके चरणों में स्तुति पुष्पांजलि समर्पित की जाती है ? वह संसारिक बंधनों में बंधा हुआ जीव तो नहीं हो सकता, क्योंकि वह स्वयं परतंत्र है, असमर्थ है, मरणधर्मा है, सांसारिक विषय वासनाओं में लिप्त है । स्तुति उसकी की जाती है जो सर्वसमर्थ हो, सर्वव्यापक हो, लोकातीत हो, सर्वज्ञ हो, अमर हो और विषयातीत हो । स्तुतियां दो प्रकार की होती हैं सकाम और निष्काम । सकाम स्तुतियों में स्तोता की कोई कामना निहित रहती है । सकाम भक्त सांसारिक अभ्युदय, धन-दौलत, ऐश्वर्य, रोग मुक्ति, मृत्यु भय आदि उपस्थित होने पर वैसे पुरुष की स्तुति में प्रवृत्त होता है, जो उसके मनोवांछित पूर्ण कर सके, जो सब कुछ देने में समर्थ हो, जो मृत्यु एवं रोग भय से बचा सके । भय से वही बचा सकता है जो स्वयं भयरहित हो, अमर हो अव्यय हो । सांसारिक व्यक्ति में ये सब गुण नहीं पाए जाते । अतएव सांसारिक की प्रशंसा स्तुति नहीं बल्कि उसके गुणों का डिमडिम घोष होने से उसे चाटुकारिता कहा जाना ही अच्छा है । स्तुति और चाटुकारिता में अन्तर है । चाटुकार को स्वयं इस बात का बोध रहता है कि वह जिस व्यक्ति की प्रशंसा कर रहा है, वह उसके योग्य नहीं है, तथापि अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रशंसात्मक वाक्यों का प्रयोग करता है । उसकी प्रशंसा में उसके हृदय का योग नहीं रहता किन्तु स्तोता के साथ ऐसी बात घटित नहीं होती । सकाम स्तुति में भी वह हृदय से अपने आराध्य की पूजा, अर्चना अथवा गुणकत्थन करता है । वह तो स्पष्ट रूप से अपनी वांछा की याचना अपने वांछाकल्पतरु प्रभु से करता है । वह अपने इष्टदेव से कुछ छिपाता नहीं है । स्तुति में हृदय को पूरी तरह खोलकर रख दिया जाता है । वहां मन, वाणी और कार्य में ताल-मेल रहता है, किंतु चाटुकारिता में उसका अभाव पाया जाता है । स्तुति बुद्धि को निर्मल बनाती है, चाटुकारिता कल्मषयुक्त करती है । स्तुति से स्तोता की प्रवृत्ति अध्यात्मवाद की ओर होती है, चाटुकार ऐहिंकता की ओर प्रवृत्त होता है । स्तोता की गति आत्मा की ओर होती है तो चाटुकार शरीर यात्री । स्तोता मुक्ति की ओर जाता है, चाटुकार बंधन निबद्ध हो जाता है । स्तुति से स्तोता निर्मल, प्रसन्न, स्वस्थ, सरल एवं ऋजुचित होता है, चाटुकारिता चाटुकार को उद्धत, पाखंडी बना देती है । स्तुति का पर्यवसान परमानंद में होता है, चाटुकारिता का अवसान घन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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