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________________ २५८ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन माहात्म्य का प्रतिपादन करता है । इस क्रम में उसकी भाषा सुन्दर एवं लघु सामासिक पदों से युक्त बन गई है। प्रसाद गुण की चारुता एवं वैदर्भी की नैसर्गिक रमणीयता सर्वत्र विद्यमान है। प्रह्लाद कृत नृसिंह स्तुति (७,९.८-५०) विपुलकाय है। इसमें ईश्वरानुरक्ति से पूर्ण पराभक्ति, शाश्वतधर्म, भक्त के सहजदैन्य तथा सत्संगति की गाथा की अभिव्यक्ति है । यह श्रुति-मधुर एवं ललित शब्दावलियों में विरचित प्रसादगुण से मण्डित है। संस्कृत की कोमलकान्त पदावलियों की सर्वत्र विद्यमानता है । सुकुमारमति स्तोता प्रह्लाद ब्रह्मसंस्पर्श से पूर्णतः प्रभावित है, अतः इसके नाम के अन्वर्थता के अनुरूप आह्लादमयी भाषा में निबद्ध इस स्तोत्र में सर्वत्र एक सदृश्य प्रवाह है। भक्ति के विभिन्न अंगों के विवेचनावसर पर भाषा की स्वाभाविक रमणीयता हृदयावर्जक हैतत् तेऽहत्तम नमःस्तुतिकर्मपूजाः कर्म स्मृतिश्चरणयोः श्रवणं कथायाम् । संसेवया त्वयि विनेति षडङ्गया कि भक्तिं जनः परमहंसगतौ लभेत ॥' गजेन्द्रकृत विष्णुस्तुति (८.३.२-२९) रमणीय स्तोत्र है । इसमें निर्गुण ब्रह्म का विशद विवेचन और विपदग्रस्त हृदय गजराज के करुण क्रन्दन की अभिनव अभिव्यक्ति है । शब्दाडम्बर विहीन इस स्तोत्र की भाषा प्रांजल एवं उदात्त है । अतिलघु काय अनुप्टप् छन्दों की मंजूषा में संचित यह वेदान्त का महनीय-कोश है । सुन्दर शब्दों का विन्यास एवं स्वाभाविकी अभिव्यक्ति से भाषा अत्यन्त प्रांजल हो गई है। गजेन्द्र आपद्ग्रस्त स्थिति में हृदय में संचित जन्मजन्मान्तरीय भावनाओं को प्रभु के प्रति समर्पित करता है, जिस कारण से सहजता और सरलता सर्वत्र विद्यमान है । ब्रह्मादिकृत श्रीकृष्ण (गर्भस्थ) स्तुति (१०.२.२६-४१) में भक्ति तथा ज्ञान का मणिकांचन संयोग सूत्र शैली में प्रतिपादित है । भगवान् के मंगलमय नाम-रूप के गुणन, मनन, स्मरण, चिन्तन, कीर्तन, दर्शन एवं आराधन की महिमा प्रसादमयी प्रांजल-मनोरम भाषा में गुम्फित है । इसमें सामासिक एवं सन्धियुक्त पदों का अभाव है। सर्वत्र श्रुतिमनोहर शब्दों का विन्यास हुआ है । भागवत कार ने इसमें संस्कृत भाषा के लालित्य एवं सारल्य तथा भाव गांभीर्य का अभिनन्दनीय आदर्श प्रस्तुत किया गया है । सत्यस्वरूप के प्रतिपादन में भाषिक सौन्दर्य रमणीय बन पड़ा है दशश्लोकात्मक यमजालनकृत श्रीकृष्ण स्तुति (१०.१०.२९-३८) में श्रीकृष्ण की आश्चर्यमयी महिमा, उनकी भक्त-वत्सलता एवं भक्त-हृदय की आन्तरिक लालसा की अभिव्यक्ति हुई है । श्रुतिमनोहर कोमलकान्तपदावली १. श्रीमद्भागवत ७.९.५० २. तत्रैव १०.२.२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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