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________________ २५६ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन विगलित होकर सुन्दर शब्दों के माध्यम से उसी सर्जनहार के प्रति समर्पित होने लगती है। जिसने उसे इस मातृगर्भ में डाला है --- तस्योपसन्नमवितुं जगदिच्छयाऽऽत्त नानातनो वि चलच्चरणारविंदम् । सोऽहं व्रजामि शरणं ह्यकुतोभयं मे येनेदशी गतिरदय॑सतोऽनुरूपा ॥' __ सुन्दर पदावलियों का विनियोग, सहजसम्प्रेषणीयता, स्वाभाविक अभिव्यंजना आदि के द्वारा इस स्तोत्र की भाषा अत्यन्त सुन्दर बन पड़ी देवहूतिकृत कपिलस्तुति (३.३३२-८) में नारी सुलभ सहज भाषा का प्रयोग हुआ है । वैदर्भी रीति संवलित, प्रसादगुण मण्डित पदावलियों का प्रयोग हुआ है, जो श्रुतिमधुर एवं हृदयावर्जक है -- देवहूति अपने वात्सल्य और प्रभु की गुणवत्ता को एक ही साथ बड़ी ही सुन्दर शब्दों में प्रकट करती स त्वं भृतो मे जठरेण नाथ कथं नु यस्योदर एतदासीत् । विश्वं युगान्ते वटपत्र एकः शेते स्म मायाशिशुरङ घ्रिपानः ॥ ब्रह्माकृत शिव (रुद्र) स्तुति (४.६.४२-५३) भगवान शिव की महानता एवं भक्तवत्सलता को प्रतिपादित करने के लिए कोमल कान्त पदावली का प्रयोग किया गया है। इस स्तोत्र की भाषा भक्तिरस से प्लावित, प्रसादगुण से मण्डित एवं अनुष्टुप् तथा उपजाति उभय छन्दों की रमणीयता से परिपूर्ण है । भक्तराज ध्रुवकृत विष्णु स्तुति (४.९.६-१७) भक्त समुदाय में अत्यन्त प्रथित है । दर्शन के गूढ़ तत्त्वों एवं भक्ति की मनोरम भावों की अभिव्यंजना में स्तोत्र की भाषा सुन्दर बन पड़ी है। यह अतिशय मनोहर और शान्तरस से परिप्लावित है । श्रुतिमधुर शब्दों की चारुशय्या पर यह भाव-मधुर स्तोत्र अधिष्ठित है। इसकी रचना समास बहुला गौड़ीरीति में है, लेकिन प्रसाद गुण का वैशद्य सर्वत्र विद्यमान है । वसन्ततिलका का सौन्दर्य सहजसंवेद्य है। भक्ति की व्याख्या से सम्बद्ध श्लोक कितना सुन्दर है -- भक्तिं मुहुः प्रवहतां त्वयि मे प्रसङ्गो भूयादनन्त महताममलशयानाम् । येनाञ्जसोल्बणमुरुव्यसनं भवाब्धिं नेष्ये भवद्गुणकथामृतपानमत्तः ॥' पृथुकृत विष्णस्तुति (४.२०.२३-३१) भक्तिशास्त्र की दृष्टि से जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही उसकी भाषा पर्यन्तरमणीय है। भक्त हृदय से स्वत: उच्छवसित भावों की अभिव्यंजना जितना रमणीय बन पड़ी है वैसा अन्यत्र १. श्रीमद्भागवत महापुराण ३.३१.१२ २. तत्रैव ३.३३.४ ३. तत्रैव ४.९.११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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