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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतितत्त्व, छन्द और भाषा २५३ इसके अतिरिक्त भागवतीय स्तुतियों में वातोमि (४.७.३१) सुन्दरी (४.७.४२) प्रहर्षिणी (४.७.३३) भुजगप्रयात (४.७.३५, ..८.४७) शालिनी (४.७.३७) मंजुभाषिणी (४.७.३९) मत्तमयूर (४.७.४३) प्रमाणिका (७.८.४९) एवं आर्यावृत्त (६.१६.३४-४७) आदि छन्द भी मिलते हैं। स्तुतियों की भाषा ___ स्तुतियों की भाषा भक्त हृदय से निःसृत होने के कारण स्वभाव रमणीय एवं प्रसाद-गुण मंडित होती है । छल-प्रपंच रहित, प्रभु के चरणों में सर्वात्मना समर्पित भक्त की वाणी स्वभावतः बाह्याडम्बर रहित और नैसर्गिक सुषमा से सुशोभित होती है। भागवतीय भक्तों की स्तुतियों में सर्वत्र सौन्दर्यचारुता विद्यमान है। छोटे-छोटे सामासिक पदों एवं श्रुति-मधुर शब्दों का उपयोग हुआ है । कहीं-कहीं दार्शनिक तथ्यों के विवेचन के अवसर पर या युद्ध आदि के निरूपण के समय समास बहुला भाषा प्रयुक्त हुई है । श्रीमद्भागवतमहापुराण वस्तुतः व्यास की समन्वय-भावना का निदर्शक है। भाषा में भी यह तथ्य परिलक्षित होता है। एक तरफ गौड़ी का बाह्याडम्बर एवं ओजगुण की धर्मता विद्यमान है, तो दूसरी ओर वैदर्भी एवं प्रसाद गुण की चारुता सहज-संवेद्य है । कुछ प्रमुख स्तुतियों की भाषा पर प्रकाश डाला जाएगा। इस क्रम में सर्वप्रथम प्रथम स्कन्ध की दो स्तुतियां, कृन्तीकृत श्रीकृष्ण स्तुति (१.८.१८-४३) एवं हस्तिनापुर की कुलरमणियों द्वारा कृत श्रीकृष्ण स्तुति (१.१०.१२-३०) है। दोनों स्तुतियों में नारी-सुलभ सरल भाषा तथा प्रसाद गुण ओत-प्रोत है। श्रीकृष्ण के विविध उपकारों से उपकृत होकर कुन्ती विगलित हृदय मे प्रभु श्रीकृष्ण की स्तुति करती है। भाषा की सहजता, स्वाभाविक रमणीयता, वैदर्भी का अनुपम विलास तथा श्रुति मधुर शब्दों का विन्यास अवलोकनीय है विपदः सन्तु नः शश्वदत्र तत्र जगद्गु रो। भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥' इस स्तुति में एक तरफ "आत्मारामाय शान्ताय" आदि समासरहित पदों का उपयोग हुआ है, वहीं दार्शनिक विवेचन में लम्बे-लम्बे सामासिक पदों- "माया जवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षजमव्ययम" का भी प्रयोग हुआ है । इसमें अनुष्टुप्, उपजाति एवं वसन्ततिलका छन्दों तथा उपमा, काव्यलिङ्ग, परिकर आदि अलंकारों का सुन्दर विन्यास हुआ है। नमस्ये, मन्ये, आददे आदि आत्मनेपदीय रूपों के अतिरिक्त परस्मैपदीय रूपों का भी उपयोग हआ १. श्रीमद्भागवत.१.८.२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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