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________________ २४६ कहता है । न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम् । यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मातु ॥ ६. सरलता - सहजता एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन गीतिकाव्य में सरलता, सहजता तथा स्वाभाविक अभिव्यक्ति की प्रधानता होती है । स्तुतियों में उपर्युक्त तत्त्व प्राणस्वरूप हैं। भक्तों के सरल हृदय से सहज रूप में भावों की सरिता शब्दों के माध्यम से प्रवाहित हो जाती है । सहज रूप से अन्तर्मन द्वारा प्रेरित भक्त अपने उपास्य के लीला गुणों से सम्बन्धित शब्दों को गुणगुनाने लगता है । सब कुछ प्रभु को ही समर्पित कर उसी का हो जाना चाहता है । केवल प्रभु दात्मक सम्बन्ध - अनन्याभक्ति की याचना करता है । विन्यस्त कथन में कितनी सहजता, सरलता एवं भाषा का स्वाभाविक प्रवाह है, यह तो कोई भागवतरस का लोभी शुक ही बता सकता है - साथ अविच्छेवृत्रासुर के अधो न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं न सर्वभौमं न रसाधिपत्यम् । न योगसिद्धिरपुनर्भवं वा समञ्जस त्वा विरहय्य काङक्षे ॥ ' जब वेणुरणन सुनकर आगत गोपियों को भगवान् श्रीकृष्ण अपने घर की ओर लौट जाने के लिए कहते हैं तब गोपियों के हृदय में सहज रूप में जो समर्पण के भाव थे वे शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त हो जाते हैं - कितनी मार्मिकता है श्रीकृष्ण चरणों में समर्पित गोपियों के इन पंक्तियों में अपना लो हे नाथ ! अपने भक्तों को - व्यक्तं भवान् व्रजभयातिहरोऽभिजातोदेवो यथाऽऽदिपुरुषः सुरलोकगोप्ता । तन्नो निधेहि करपङ्कजमार्तबंधो तप्तस्तनषु च शिरस्सुच किङ्करीणाम् ॥' इस प्रकार श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में गीतिकाव्य के सभी तत्त्व पाये जाते हैं । स्तुतियों की छन्द-योजना जैसे सज्जनों का व्यवहार, उनके शील, गुण और सज्जनता की शोभा औचित्यपूर्ण व्यवहार से ही सम्भव है वैसे ही काव्य में गुण, सुन्दर छन्द एवं रसनियोजन तभी सौन्दर्योत्पादक होते हैं जब उनमें औचित्य का समावेश हो । वर्ण और शब्दयोजना के औचित्य के समान ही छन्दों का १. श्रीमद्भागवत ८.३.६ २. तत्रैव ६.११.२५ ३. तत्रैव १०.२९.४१ ४. क्षेमेन्द्र, औचित्य विचारचर्चा, कारिका १९ और उसकी टीका For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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