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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार रस बिम्ब कोटि में आते हैं । मीठा, तीता आदि जिह्न ेन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य विषय इस बिम्ब की जिह्वा के द्वारा पदार्थों की स्वादगत विशेषताओं - खट्टा, का ग्रहण होता है । उनका प्रसंग आते ही प्रमाता की चेतना में आस्वाद्य का पुनः प्रत्यक्षीकरण हो जाता है । रसबिम्बों का प्रत्यक्षीकरण अल्पकालिक होता है, क्योंकि रसना द्वारा ग्राह्य विषय की आस्वादन की अवधि क्षणिक होती है । श्रीमद्भागवत के स्तुतियों में इस प्रकार के बिम्ब उपलब्ध नहीं होते हैं । अन्तःकरण ग्राह्य बिम्ब कुछ ऐसे भी पदार्थ होते हैं जिनका ग्रहण इन्द्रियों के द्वारा नहीं किया जा सकता है। मनुष्य की विभिन्न प्रकार की भावनाएं एवं धारणाएं अमूर्त हुआ करती हैं - जिनका केवल अनुभव किया जाता है, इन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं । उन अमूर्त पदार्थों को हृदय और बुद्धि के द्वारा ग्रहण किया जाता है । विभिन्न प्रकार के भावनाओं - रति, हास, शोक, क्रोध आदि स्थायी भात्रों एवं हर्षविषाद, धृति, अमर्ष इत्यादि संचारी भावों का ग्रहण किया जाता है, इसलिए ये भावबिम्ब कहलाते हैं, जो हृदय ग्राह्य होते हैं । यश, अपयश, पुण्य-पाप इत्यादि धारणाएं बुद्धि का विषय होने के कारण प्रज्ञा बिम्ब के अन्तर्गत आती हैं । २२९ यद्यपि "रति" आदि भावनाएं एवं यश आदि की धारणाएं अमूर्त होने से अपने आप में बिम्ब नहीं हो सकतीं । परन्तु कभी-कभी कवि अपने हृदय के प्रच्छन्न भावनाओं एवं बुद्धि की अवधारणाओं को, प्रभावादि की समानता के आधार पर मूर्त पदार्थों की सहायता से मूर्तिकरण कर देता है, जिससे उस मूर्त पदार्थ के क्रिया कलापों के साथ-साथ इन भावादिकों की अनुभूति से सम्बद्ध क्रियाकलापों का दृश्य भी सामने उभर आता है । यही मूर्तिकरण इन भावों और धारणाओं का बिम्ब कहलाता है ।" इस प्रकार अन्तःकरण ग्राह्य बिम्ब के दो रूप ( १ ) भाव बिम्ब एवं (२) प्रज्ञा बिम्ब होते हैं । भाव बिम्ब वे शब्द जिनकी अनुभूति का परिचय कोई बाह्य करण तो नहीं दे संकता, परन्तु उनका उच्चारण करते समय मानसिक पूर्वानुभव जागरित हो जाता है । यथा सुख-दुःख, काम-क्रोध, लज्जा - चिन्ता आदि । भागवत - कार ने अनेक स्थलों पर ऐसे बिम्बों का विधान किया है । भक्ति विवेचक १. कालिदास के साहित्य में बिम्बविधान पृ० १७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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