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________________ १६० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन (११) चित्रात्मकता (१२) सरल एवं सहृदयाह्लाहक शब्दों का उचित विन्यास (१३) अदोषता (१४) मार्गत्रय की योजना (१५) अभिधा के साथ लक्षणा एवं व्यंजना का सद्भाव (१६) कोमलता (१७) रसमयता (१८) मार्मिकता (१९) संक्षिप्तता (२०) स्वाभाविक अभिव्यक्ति (२१) भावातिरेकता (२२) छन्दोजन्य नाद माधुर्य (२३) भावानुकूल वातावरण (२४) सूक्ष्म संवेदना । श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में उत्तम काव्य के उत्थापक सभी तत्त्व एकत्र समाहित हैं। भावों की स्वभाविक अभिव्यक्ति एवं सहज सम्प्रेषणीयता, भाषा की सरलता, समरसता एव संवेद्यता, छन्दालंकारों का समुचित प्रयोग, रीति, गुणादि की योजना, अन्तर्वेदना, कल्पना चारुता, सूक्ष्मसंवेदना आदि गुण सर्वत्र विद्यमान हैं। उनका संक्षिप्त पर्यालोचन इस प्रकार किया जा रहा है :१. माधुर्यादि गुणों का सन्निवेश गुण काव्य के उत्कर्षाधायक तत्त्व है। ये शब्दार्थ रूप काव्य के साक्षात् उपकार करते हैं, रस के आश्रय से नहीं। आचार्य मम्मट ने पूर्वाचार्यों द्वारा निरूपित दश काव्य गुणों का निरसन कर-माधुर्य, ओज और प्रसाद तीन ही गुण स्वीकृत किया है ।' __श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में तीनों गुणों की योजना सम्यक् रूप में की गई है । भागवतकार ने अनेक स्तुतियों में ट वर्गीय वर्णों को छोड़कर शेष मधुर ह्रस्व वर्गों की योजना कर माधुर्य गुण युक्त पद्यों का ग्रथन किया है। जब चित्तवृत्ति स्वाभाविक अवस्था में रहती है, तब रति आदि से उत्पन्न आनन्द के कारण माधुर्य गुण युक्त रस के आस्वादन से चित्त द्रवीभूत हो जाता है । स्तुति के पूर्वकाल में भक्त की चित्तवृत्तियां एकत्रावस्थित हो जाती हैं, फलतः वह अपने उपास्य के गुणों का वर्णन श्रुतिमधुर शब्दों में करने लगता है। भक्त के अनुरूप ही स्तुतियों में गुणों का सन्निवेश पाया जाता है। १. काव्यप्रकाश -८१८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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