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________________ ५. श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का काव्यमूल्य एवं रसभाव योजना जब कवि अपने मन, वचन और इन्द्रियों को एक स्थान पर स्थापित कर देता है तब काव्य वैखरी प्रस्फुटित होती है । हृदय की अन्तर्वेदना, भावुकता, सांसारिक अनुभूति, इत्यादि को कवि सहजाभिव्यंजक शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर देता है । स्तुतियों में भी यही स्थिति होती है । जब भक्त सम्पूर्ण रूप से प्रभु की प्रपत्ति स्वीकार कर लेता है, तब अनायास ही उसके हृदय से सरस एव मनोरम शब्दों की प्रस्रविणी निःसृत होने लगती है । श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में शास्त्राचार्यों के द्वारा निर्धारित सभी काव्य उपादानों की प्राप्ति होती है । शब्दालंकार, अर्थालंकार, रस, शब्दशक्तियां, प्रतीक, बिम्ब, छन्दो- योजना एवं सौन्दर्य प्रभृति समस्त काव्य तत्त्व श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में समाहित हैं । आचार्य भामह ने शब्द, छन्द, अभिधान अर्थ, इतिहासाश्रित कथा, लोक, युक्ति और कला इन आठ तत्त्वों को काव्य के लिए आवश्यक माना है । इनकी दृष्टि में जिस कवि की कृति में उपर्युक्त आठों तत्त्व समाहित होते हैं वही कृति काव्य की उच्च पंक्ति में निक्षिप्त करने योग्य है । उनका कथन है कि सत्कवित्व के बिना वाणी में वैदग्ध्य आ नहीं सकता और बिना वैदग्ध्य के कोई भी कृति चमत्कारपूर्ण नहीं हो सकती रहिता सत्कवित्वेन कीदृशी वाग्विदग्धताः ॥ भरतमुनि ने श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पदों की सुकुमारता, अभिव्यंजकता, उदारता और कान्ति आदि दश गुणों को काव्य के लिए उपादेय माना है । पर भामह की तत्त्वग्राहिणी प्रतिभा ने प्रसाद माधुर्य और ओज इन तीन गुणों को अपनी स्वीकृति प्रदान की है। इन्होंने वक्रोक्ति को काव्य निष्पादक तत्त्व बतलाकर उसे काव्य के लिए ही १. काव्यालंकार सूत्र १.९ २. तत्रैव १.४ ३. नाट्य शास्त्र १७.९६ ४. काव्यालंकार १.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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