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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन इस प्रकार भक्ति के परम लक्ष्य भगवान् ही होते हैं जिन्हें भक्तजन अपना सांसारिक पारमार्थिक सब कुछ त्याग कर सर्वात्मना प्राप्त करना चाहते हैं । भक्ति का वैशिष्ट्य १३८ श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों में भक्ति का विस्तृत विवेचन हुआ है । भक्तिशास्त्रों में भक्ति के विविध वैशिष्ट्य प्रतिपादित किए हैं। भक्तिरसामृत सिन्धुकार के अनुसार क्लेशधनी शुभदा मोक्ष लघुताकृत सुदुर्लभा । सान्द्रानन्दविशेषात्मा श्रीकृष्णाकर्षिणी च सा ॥ ' अर्थात् भक्ति क्लेशविनाशिका, मंगलदा मोक्षतिरस्कारिणी सान्द्रानंदस्वरूपा और श्रीकृष्णाकर्षिणी है । श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों के अवलोकन से निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती है १. आनन्दरूपता २. भववन्धन विनाशका 5. आवरण भंजिका ९. सांसारिक भोगायतन से उपरतता । ३. निष्कामता १०. विश्वव्यापी प्रेम ४. आत्मस्थता किंवा आत्मोपरता ५. सर्वस्व समर्पण ११. भक्त की स्थिति १२. श्रीकृष्णाकर्षिणी ६. अस्तित्व का विलय ७. कल्याणकारिणी १३. साधन एवं साध्यरूपा १४. अनन्यता कुछ प्रमुख वैशिष्ट्यों का विवेचन किया जा रहा है । १. भक्ति केवलानंद स्वरूपा है— जब भक्त हृदय में भक्ति उपचित होती है, उसके उपास्य के गुण, लीला के प्रति अखंडात्मिक रति उत्पन्न होती है, तब भक्त अतिशयानन्द के सागर में निमज्जित हो जाता है । उस अवस्था में आनन्द को छोड़कर और कोई पदार्थ नहीं रहता । वह प्रेमी भक्त उस महान् वस्तु को पा लेता है, जिसके पाने पर सारी इच्छाएं नष्ट हो जाती है, वह अमृत के समुद्र में क्रीड़ा करता है यस्य भक्तिर्भगवति हरौ निःश्रेयसेश्वरे । विक्रीडतोऽमृताम्भोधौ कि क्षुद्रैः खातकोदकैः ॥ भगवान् चक्रपाणि के विविध लीला गुणों को सुनकर भक्त कभी हंसता है, कभी रोता है तो कभी नाचने लगता है । बाह्य व्यवहार से रहित कभी १. भक्तिरसामृत सिन्धु पूर्वविभाग २. श्रीमद्भागवत महापुराण ६।१२।२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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