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________________ १३६ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन भगवद्विग्रह की अर्चना, उनकी वन्दना, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप नवधा भक्ति भेद ही भक्ति के साधन हैं । भगवद्गुणाख्यान-लीलाचरितादि के श्रवण से भक्त भगवान् में भक्ति प्राप्त कर सिद्धि लाभ करता है । भगवत्गुणकथा श्रवण से उत्पन्न पुष्टि भक्ति से भक्त अविद्या का विनाश कर भगवान् वासुदेव में अनन्यारति को प्राप्त करता है ।' भक्ति और ज्ञान वैराग्य भक्ति और ज्ञान वैराग्य का जनक जन्यभाव सम्बन्ध है । भक्ति ज्ञान वैराग्य की जनयित्री शक्ति है । भागवत महात्म्य में भक्ति को ज्ञान वैराग्य की माता कहा गया है। भक्ति हृदयस्थ अविद्या ग्रन्थि का छेदन कर भक्त हृदय में आत्मज्ञान और संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न करती है। ज्ञान वैराग्ययुक्त जीव ब्रह्मदर्शन को प्राप्त करता है।' भक्ति के द्वारा तदाकार रूप ज्ञान की प्राप्ति होती है। एकाग्र मन से भगवान् में भक्ति करने पर दागेव ज्ञान और वैराग्य की उत्पत्ति होती है। भक्तिजन्यज्ञान वैराग्य संयुक्त भक्त हेयोपादेय बुद्धि का परित्याग कर समदर्शन हो जाता है। ज्ञान, कर्म और भक्ति को छोड़कर जीव मात्र के लिए और कोई श्रेयस्कर मार्ग नहीं है। भक्ति के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण में चरणरति, विरक्ति तथा भगवत्स्वरूप की प्राप्ति होती है। भक्ति और मुक्ति ____ मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन भक्ति ही है, जिसके द्वारा जीव दुस्तर माया का संतरण कर मुक्ति प्राप्त करता है। भक्ति के अतिरिक्त मुक्तिप्रापणार्थ अन्य कोई सुलभ मार्ग नहीं है । जो भगवान् अखिलानंद में दृढ़ाभक्ति करते हैं १. श्रीमद्भागवत ३.५.४५ २. तत्रैव ३.२७.२१ ३. भागवतमाहात्म्य ४४५ ४. श्रीमद्भागवत ३.३२.२३ ५. तत्रैव ४.१७.२५ ६. " ४.२९.३७ " ६.१७.३१ ८. " ११.२०.६ ११.२.४२ १०. " ३.२५.१९ ९. " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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