________________
अध्याय १ : १६ पर आरूढ़ होनेवाला व्यक्ति कल्याण को देख सकता है । गणधर गौतम के लिए 'जायसंसए, जायकोउहले' प्रयुक्त विशेषण इसी के द्योतक हैं ।
यह संशय ज्ञान की अनिर्णायकता का सूचक नहीं है । इसमें जिज्ञासा है। जहां जिज्ञासा है, वहां सत्य का दर्शन होता है ।
संदेह ज्ञान की अनिर्णायकता का सूचक हैं। संदेह होने पर व्यक्ति जो है उससे अन्यथा ही मानता है। जहां संदेह है वहां सत्य की उपलब्धि नहीं होती । संशय और संदेह में यही अन्तर है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org