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४२४ : सम्बौधि
है | कबीर ने कहा है
माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख मांय । मनुवा तो दस दिशि फिरे, यह तो सुमिरण नांय ॥ मन्त्र जप के साथ मानसिक एकाग्रता, श्रद्धा, दृढ़ निष्ठा, पवित्रता, उच्चारण का सम्यक् ज्ञान आदि तथ्य नितान्त विज्ञेय हैं । फ्रांस की महिला वैज्ञानिक 'फिनलांग' ने शब्द - विज्ञान पर अद्भुत परीक्षण किया और वह इस परिणाम पर पहुंची कि शब्दों के साथ भावों का गहन सम्बंध है | हृदय शब्द का प्रतिबिम्ब है । 'फिनलांग' ने अपने लिए एक वीणा स्वयं तैयार की और नीचे की ओर तारों के साथ एक चाक का टुकड़ा बांध दिया । चाक को एक बोर्ड पर लगा दिया गया । वीणा को बजाने से चाक हिलने लगा । और बोर्ड पर कुछ अस्पष्ट रेखाएं खिंच गईं। उसने अनुभव किया कि जिस तरह गाना गाया जाता है और साज बजता है, उसी तरह की आकृतियां बोर्ड पर बन जाती हैं। एक बार उसने रोमन केथोलिक मत के अनुयायी को अपना धार्मिक गीत गाने का निमन्त्रण दिया । उसके गाने से बोर्ड पर एक स्त्री की गोद में बालक का चित्र खिंच गया । स्त्री मरियम और बालक ईसा था । गीत में प्रभु ईसा की स्तुति की गई थी । उसे इस पर भी सन्तोष नहीं हुआ । उसने वहां पढ़ रहे एक भारतीय विद्यार्थी को बुलाया और संस्कृत मन्त्रों के उच्चारण की प्रार्थना की विद्यार्थी ने कालभैरवाष्टक के स्तोत्र का गान किया। इससे एक भयंकर मूर्ति और कुत्ते की रेखाएं अंकित हो गई। स्तोत्र में व्यक्त भावना के अनुरूप ही आकृति बन गई। इससे वह इस निर्णय पर पहुंची कि शब्दों का भावों से गहन सम्बन्ध होता है और उन पर शब्दों का विशेष प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि मन्त्रों द्वारा हृदय और मस्तिष्क विशेष रूप से प्रभावित होते हैं और उनके जप और पाठ से मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का उद्भव होता है ।"
saft - विज्ञान के विशारद् वैज्ञानिकों ने ध्वनि के आधार पर अनेक आश्चर्यजनक प्रयोग किए हैं । ध्वनि के माध्यम से अनेक व्यक्तियों को असाध्य रोग से मुक्त किया है, सफल ऑपरेशन किया है, हीरे को काटा है । यौगिक ग्रंथियों की जागरण 'और प्राणों का जागरण भी मंत्र द्वारा किया जा सकता है। इस ध्वनि का मूल स्रोत है अनाहत, जहां से शब्द का जन्म होता है। अजपाजप, अनाहत की बात योग के विद्यार्थियों से अपरिचित नहीं है । आहत शब्द-मन्त्र के द्वारा अनाहत को पकड़ना लक्ष्य है ध्वनि से यह जो कुछ वैशिष्ट्य सम्पादित होता है, अगर अनाहत पकड़ में आ जाये तो उसकी कल्पना क्या की जाय ? प्राणाचार्य पुस्तक में लिखा है - " सारे शब्द और अक्षर जो ध्वनिमात्र प्रतीत होते हैं, वे एकनाद के मूर्त रूप हैं । वह नाद जिसे वक्ता के अतिरिक्त कोई नहीं सुन सकता । स्थान और प्रयत्न के बिना भी वह प्रत्यक्ष है । स्थान और प्रयत्न से
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शुभभावना,
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