SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शरीरों का स्वरूप औदारिक शरीर जो शरीर स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न होता है वह औदारिक शरीर है । वैक्रिय आदि चारों शरीर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर पुगद्लों से बने हुए होते हैं । औदारिक शरीर आत्मा से अलग हो जाने के बाद भी टिक सकता है । परन्तु वैक्रिय आदि शरीर आत्मा के अलग होते ही बिखर जाते हैं । औदारिक शरीर का छेदन - भेदन किया जा सकता है, परन्तु अन्य शरीर में छेदन - भेदन संभव नहीं । मोक्ष की प्राप्ति भी सिर्फ औदारिक शरीर से ही हो सकती है । औदारिक शरीर में हाड़, मांस, रक्त आदि होते हैं और इनका स्वभाव भी गलना, सड़ना, विनाश होना है। अध्याय १३ : २८७ वैक्रिय शरीर शरीर छुटपन, बड़पन, सूक्ष्मता, स्थूलता, एकरूप, अनेक रूप आदि विविध क्रियाएं करता है, वह वैक्रिय शरीर है । जिस शरीर में हाड़, मांस, रक्त न हो तथा जो मरने के बाद कपूर की तरह उड़ जाए, उसको बैक्रिय शरीर कहते हैं । 1 आहारक शरीर चतुर्दश- पूर्वधर मुनि आवश्यक कार्य उत्पन्न होने पर जो विशिष्ट पुद्गलों का शरीर बनाते हैं, वह आहारक शरीर है। तेजस शरीर शरीर आहार आदि के पचाने में समर्थ है और जो तेजोमय है वह तैजस शरीर है। इसे वैद्युतिक शरीर भी कहा जाता है । कार्मण शरीर ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के पुद्गल समूह से जो शरीर बनता है, वह कार्मण शरीर है । तेजस और कार्मण शरीर सूक्ष्म शरीर हैं। आत्मा के साथ इनका अनादिसम्बन्ध है । औदारिक शरीर जन्म-सम्बन्धी है। वैक्रिय शरीर जन्म सम्बन्धी और Jain Education International for भी होता है । आहारक शरीर योग- शक्तिजन्य होता है । ये तीनों शरीर सांगोपांग होते हैं । ये स्थूल शरीर हैं । स्थूल शरीर से मुक्त हो जाने पर आत्मा मुक्त नहीं होती है । आत्मा की मुक्ति तब होती है जब सूक्ष्म शरीर भी छूट जाते हैं । सूक्ष्म कार्मण शरीर से ही आत्मा स्थूल शरीर का निर्माण कर लेती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy