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________________ अध्याय १२ : २७५ आधार पर वाङमय का विस्तार किया था। उत्पाद और व्यय प्रत्येक चेतन और जड़ दोनों पदार्थों की अवस्थाएं हैं। जड़ और चेतन दोनों ध्र व हैं। जड़ चेतन नहीं होता और चेतन जड़ नहीं होता। अवस्थाओं का परिवर्तन इन दोनों में सतत चालू रहता है । चेतन एक अवस्था को छोड़कर अन्य अवस्था में जाता है। यह आत्मा की अमरता है । गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-"पुराने कपड़े के फट जाने पर जिस प्रकार नया कपड़ा धारण किया जाता है, उसी प्रकार आत्मा भी अपनी वर्तमान जीर्ण स्थिति को त्यागकर नया रूप स्वीकार करती है। कभी देवत्व, कभी पशुत्व, कभी नारकीय, कभी मानवीय आकार में आत्मा का परिवर्तन होता रहता है। वह बालक से युवक और युवक से बूढ़ा बन मृत्यु का आलिंगन करती है । इन सबमें आत्मा विद्यमान रहती है । ये उसकी विभिन्न अवस्थाएं हैं। चेतनत्व का विनाश नहीं होता। जड़ में भी यही परिवर्तन मिलता है। मिट्टी के अनेक आकार बनते हैं और बिगड़ते हैं। सोने की कितनी अवस्थाएं होती हैं। लेकिन सुवर्णत्व सब में वैसा ही रहता है। एक व्यक्ति सोने का घड़ा लेना चाहता है, एक व्यक्ति मुकुट और एक व्यक्ति केवल सुवर्ण। सोने का घड़ा बनने पर एक को प्रसन्नता होती है और मुकुटवाले को विषाद। लेकिन सुवर्णवाले व्यक्ति को न प्रसन्नता है, न विषाद । सुवर्ण ध्रौव्य है । घट और मुकुट उसकी अवस्थाएं हैं। पुद्गल-जड़ के गुण किसी भी दशा में मिटते नहीं। मिट्टी भले सोने के रूप में परिणत हो जाए, शरीर चिता में जलकर राख भी क्यों न बन जाये, इन सबमें वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शये सदा अवस्थित रहेंगे । एक परमाणु से लेकर अनन्त परमाणुओं के स्कन्ध में भी इनकी अवस्थिति है। संसार की अपेक्षा से मुक्त होने वाले जीव कम हो जाते हैं। वे अपने परमात्म-स्वरूप को पाकर जन्म और मृत्यु के घेरे को लांघ जाते हैं। किन्तु इससे आत्मा की संख्या में कोई कमी-वेशी नहीं होती। आत्मत्व यहां और वहां सतत विद्यमान रहता है । संसारी आत्माएं अनन्त हैं और मुक्त आत्माएं भी अनन्त हैं। मुक्त जीवों की अपेक्षा संसारी जीव सदा अनन्त रहे हैं और रहेंगे। संसार कभी शून्य नहीं होगा। मुक्ति जाने के योग्य जीव भी सदा यहां मिलते रहेंगे। __श्राविका जयन्ती के प्रश्न से इसका स्पष्ट हल सामने आ जाता है । जयन्ती ने भगवान् महावीर से पूछा-"भगवन् ! क्या सभी जीव मुक्त हो जायेंगे? यदि सभी मुक्त हो जायेंगे तो संसार जीवशून्य हो जायेगा।" भगवान् ने कहा- “ऐसा नहीं होता । मोक्ष में वे ही जीव जाते हैं, जो भव्य होते हैं ।" "इससे एक प्रश्न और पैदा हो जाता है कि भव्य जीव सब मोक्ष में चले जायेंगे, तो क्या संसार भव्यशून्य नहीं हो जायेगा ?" भगवान् ने कहा- “ऐसा भी नहीं होगा। मोक्ष में जाने वाले भव्य जायेंगे। लेकिन वैसी अनुकूल स्थिति उत्पन्न होने पर ऐसा होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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