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(बाईस)
अध्याय ८
बन्ध-मोक्ष-वाद (श्लोक २६)
१५४१६६ १. आत्म-बन्धन और आत्म-मुक्ति की जिज्ञासा। २. बन्ध और मोक्ष की परिभाषा।
३. प्रवृत्ति और निवृत्ति। ४-१२. प्रवृत्ति के पांच प्रकारों-मिथ्यात्व, अविरति आदि का विवरण । १३-१६. चार प्रकार की क्रियायें और उनका कार्य ।
१७. पुद्गल-मुक्ति की अवस्था। १८-२४. निवृत्ति के पांच प्रकारों-सम्यक्त्व, विरति आदि का विवरण। २५. दुःखोत्पति के हेतु को जानने वाला ही दुःख-निरोध के हेतु को
जानता है। २६. दुःख-हेतु और सुख-हेतु का निरूपण । २७. मेघकुमार की श्रामण्य में पुनः स्थिरता। २८. मेघकुमार की पुनः श्रामण्य स्वीकार करने की प्रार्थना। २६. मनोमालिन्य की शुद्धि के लिये प्रायश्चित्त की याचना ।
अध्याय
१७१-१८४
मिथ्या-सम्यग्-ज्ञानवाद (श्लोक ३७) १. मिथ्याज्ञान और सम्यग ज्ञान का भेद क्यों? २-५. ज्ञान का आवरण और उसका परिणाम । ६. आत्मा के अनन्तज्ञान का कथन ।
७. आवरण के आधार पर तारतम्य । ८-६. संशय ज्ञान और मिथ्याज्ञान का विवेक । १०. मिथ्यादृष्टि कौन? ११. प्रमाण की परिभाषा। १२. सम्यग्दृष्टि की परिभाषा। १३. सम्यग्ज्ञान क्या है ?
१४. ज्ञान का फल चित्त की स्थिरता। १५-१८. ज्ञानार्जन के चार प्रयोजन ।
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