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मिथ्या-सम्यग-ज्ञानवाद
मेघः प्राह
ज्ञानं प्रकाशकं तत्र, मिथ्या सम्यक्त्व कल्पना । क्रियते कोऽत्र हेतुः स्याद्, बोद्ध मिच्छामि सम्प्रति ॥१॥ १. मेघ बोला-ज्ञान प्रकाश करने वाला है। फिर मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञान ऐसा जो विकल्प किया जाता है, उसका क्या कारण है ? अब मैं यह जानना चाहता हूं।
डेल्फी के मोनूर में देववाणी हुई कि सुकरात महान् ज्ञानी है। एथेंस वासी इससे बहुत प्रसन्न हए। वे सुकरात के पास आए। उन्होंने देववाणी के सम्बन्ध में बताया। सुकरात ने कहा---'नहीं, मैं अज्ञानी हूं। मैं जब नहीं जानता था तब मैं अपने को ज्ञानी समझता था और जब से जानने लगा हं तब से अपने को अज्ञानी समझता हूं।'
एक यह अज्ञान है और एक अज्ञान ज्ञान के पूर्व का होता है। दोनों में बड़ा अन्तर है। ज्ञान के पूर्व का अज्ञान ज्ञान का आवरण है, ज्ञान का अभाव है और ज्ञान के अनन्तर का अज्ञान आवरण या अभाव नहीं है। किन्तु नहीं जानना है । जो देखा है, अनुभव किया है, जाना है वह इतना महान् है कि उसके संबंध में कहना कठिन है। ____जिस पर अज्ञान का आवरण अधिक होता है उसे विवेक नहीं होता। अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना उसके लिए अशक्य होता है। वह तमोमय जीवन जीता है। वह नारकीय जीवन है। इसलिए सन्तजनों ने मानव को आलोक की ओर आकृष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा- 'जो उस परम सत्य को जान लेता है उसके हृदय की ग्रंथि भिन्न हो जाती है, संशय छिन्न हो जाते हैं और समस्त कर्म क्षीण हो जाते हैं'। 'नाणं पयासकर'-ज्ञान प्रकाशक है, यह बहुत सारवान् सूत्र है। सम्यग्ज्ञान के आलोक में जन्म-जन्मान्तरों का संचित तम एक क्षण में नष्ट हो जाता है।
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