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________________ 34 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? काम, अर्थ और धर्म ____ काम और अर्थ जीवन-यात्रा को चलाने के लिए हैं। काम के बिना जीवन की यात्रा नहीं चलती। जीवन की यात्रा तव तक चलती है, जब तक काम है। कामना तब तक पूरी नहीं होती जब तक अर्थ नहीं होता। कामना की पूर्ति का एकमात्र साधन है अर्थ । जो आदमी केवल इन दो आयतनों में ही जीना चाहता है, वह आदमी शांति का जीवन नहीं जी सकता। वह व्यक्ति संतोष, स्थिरता और प्रसन्नता का जीवन नहीं जी सकता। आज के लोग दो खेमों में बंटे हए हैं। कछ लोग केवल दो आयतनों-काम और अर्थ में जीना चाहते हैं। वे धर्म को भी नकारते हैं और मुक्ति को भी नकारते हैं। कुछ लोग चार आयतनों में जीना चाहते हैं। जो केवल दो आयतनों में जीना चाहते हैं वे मानवीय चेतना के साथ खिलवाड़ करते हैं। वे मनुष्य को केवल रोटी के आधार पर जिलाना चाहते हैं। क्या रोटी मन की शांति दे सकती है? जिन्हें प्रचुरता से रोटी उपलब्ध है उनका मन भी प्रचुर रूप से अशान्त बना हुआ है। जिन्हें रोटी की प्रचुरता है, वे बड़ी से बड़ी अनैतिकता और बुराई करने में नहीं हिचकते। हम इस सचाई को स्वीकार करें-रोटी ही सब कुछ नहीं है। रोटी के अलावा भी बहुत अपेक्षाएं हैं हमारे जीवन की। उन अपेक्षाओं की पूर्ति धर्म और मोक्ष से हो सकती है। हमें जाने-अनजाने तीसरे आयतन-धर्म में प्रवेश करना ही होगा। वह धर्म, जो प्रायोगिक है। काम साध्य है। अर्थ उसकी पूर्ति का साधन है। हम अर्थ-व्यवस्था को संतुलित करना चाहते हैं और काम व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं। क्या असन्तुलित काम व्यवस्था में संतुलित अर्थ-व्यवस्था का जन्म होगा? उत्तर सीधा है-नहीं होगा। यदि हो गया तो वह शैशव काल भी पूरा नहीं कर पाएगा। प्रत्येक राष्ट्र में काम पर विचार करने वाले कामशास्त्री और अर्थ पर विचार करने वाले अर्थशास्त्री हुए हैं और आज भी हैं। दोनों प्रकार के चिन्तक काम और अर्थ को विभक्त कर देखते रहे हैं। वह एकांगी दृष्टिकोण ही परिष्कार के लिए समस्या बन रहा है। कुछ धर्माचार्यों ने काम, अर्थ और धर्म को एक साथ देखा। उनका दृष्टिकोण सर्वांगीण बना। उन्होंने कहा-काम और अर्थ का परिष्कार करो। उस परिष्कार का साधन होगा धर्म। - काम की व्यवस्था किए बिना राष्ट्र के पतन का उदाहरण है रावण का साम्राज्य। रावण की मृत्यु पर मंदोदरी ने कहा-'पतिदेव! तुमने इन्द्रियों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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