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________________ 30 कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी? का भी उपयोग होता है, संखिया तथा गंधक का भी उपयोग होता है। अपरिष्कृत पारद, गंधक या संखिया बहुत हानिकारक होते हैं। इनके सेवन से मृत्यु हो जाती है। इनका शोधन हो जाने पर ये उपयोगी बन जाते हैं। शोधन किया हुआ पारा, संखिया या गंधक मारने वाले नहीं, उबारने वाले बन जाते हैं। शोधन के पश्चात् इनकी विषैली शक्ति कम हो जाती है और इनकी उपयोगिता बढ़ जाती है। ___काम और अर्थ का परिष्कार हो जाने पर शक्ति में परिवर्तन आ जाता है। जितनी बुराइयां, अनैतिकता, अनाचार और अप्रामाणिकताएं होती हैं, वे सब अपरिष्कृत काम के कारण होती हैं। निदर्शन अपरिष्कृत और परिष्कृत काम का __ काम परिष्कृत भी होता है और अपरिष्कृत भी होता है। एक व्यक्ति था विद्वान और वैभवशाली। विद्या और लक्ष्मी का योग कम मिलता है, पर वह विद्यावान भी था और लक्ष्मीवान भी। एक पुजारी उसके पास आकर बोला-'पंडितवर! आज रात को मुझे एक सपना आया। उसमें मैंने भगवान को देखा। उन्होंने मुझे कहा-जाओ, उस पंडित के पास और उसे कहो कि भगवान का आदेश है कि दस हजार रुपये वह तुम्हें दे। उन रुपयों से नया मंदिर बनवाना है इसलिए मैं आया हूं। आप मुझे रुपया दें और भगवद् आज्ञा का पालन करें।' धनी पंडित ने सोचा-यह मुझे ठगने आया है और वह भी भगवान के नाम पर। भगवान क्यों कहने आते नए मंदिर के निर्माण के लिए। पंडित ने कहा-'पुजारीजी ! बात तो तुमने अच्छी कही। भगवान का आदेश मानना ही होगा। रात भर विश्राम करो। मैं सोच लूं। प्रातःकाल जो कुछ होगा, देखा जाएगा। . पुजारी रात भर वहीं रहा। सोचा, पंडित मेरी ठगाई में आ गया। रात बीती। प्रभात हुआ। पण्डित उठा। पुजारी आया। पण्डित ने कहा-'पुजारीजी! तुमने कल भगवान का जो आदेश कहा, वह ठीक था। आज रात को मेरे पास भी भगवान आए। सपने में उनका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कहा-सामने जो चबूतरा बना हुआ है, उसके नीचे दस हजार रुपये गड़े हुए हैं। पुजारी को कहना कि वह उस चबूतरे को उखाड़ कर दस हजार रुपये ले ले और मंदिर बनवा दे।' ___ पुजारी बोला-'पंडितजी! खुदाई करूं और रुपये न मिले तो क्या होगा।' पंडित ने कहा- लगता है, तुम्हें भगवान के दर्शन हुए ही नहीं। तुम्हें भगवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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